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सेक्स वर्कर्स की इनसाइड स्टोरी पढ़िये, GB रोड की सेक्स वर्कर्स का क्या कहना है ?

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भारत में सेक्स वर्कर्स को काफी नीची बल्कि कलंक की दृष्टि से देखा जाता है. उन्हें ना समाज अपनाता है ना ही उनके साथ इज्जत से पेश आता है और साथ ही उनके निर्दोष बच्चों के साथ लोग अमानवीय बर्ताव करते हैं.

एक ऑनलाइन वेबसाइट के फोटोग्राफर्स ने दिल्ली की सेक्स वर्कर्स के बच्चों से बात कर उनका दर्द लोगों के सामने रखने की कोशिश की है.

जीबी रोड में रहने वाले 21 साल के अर्जुन की मां सेक्स वर्कर हैं. अर्जुन बताते हैं कि स्कूल में बाकी स्टूडेंट्स के ताने सुनकर उसने स्कूल जाना छोड़ दिया. गलती चाहे किसी की भी होती, सारे स्टूडेंट्स उसे ही मारते थे. इस कारण उसने स्कूल जाना छोड़ दिया. इसके बाद उसने दरियागंज में एक मैकेनिक शॉप में काम करना शुरू किया.

उसने अपने साथियों से छिपाया कि वो एक सेक्सवर्कर का बेटा है लेकिन कुछ दिनों में सभी को पता चल गया और लोग उसे गंदी-गंदी बातें कहने लगे. इसके बाद उसने काम छोड़ दिया और फिर उसकी संगती बुरे लोगों से हो गई. अर्जुन जानता था कि जो काम वो कर रहा है वो गलत है लेकिन इन सबसे दूर नहीं जा पा रहा था.

एक दिन अपनी बहन को कत-कथा एनजीओ की क्लासेज से लेने गए अर्जुन को वहां का माहौल काफी अच्छा लगा. जिसके बाद वो वहां कई बार जाने लगा. धीरे-धीरे अपने अतीत को भूल अर्जुन ने नयी शुरुआत करने का फैसला किया. अब अर्जुन अपनी मां की वजह से शर्मिंदा नहीं होता. उसने अपनी पहचान बनाई है.

जीबी रोड में रह रहे बच्चों के भी कुछ सपने हैं. निमिष फोटोग्राफर बनना चाहते हैं. इसके लिए उन्होंने कत-कथा के को-फाउंडर हार्दिक गौरव से बात की और उनसे फोटोग्राफी के गुण सीखना शुरू किया. इसके बाद उन्होंने जीबी रोड में रहने वाली महिलाओं की वो तस्वीरें खींचना शुरू की, जो उनकी जिंदगी लोगों को उस नजरिए से दिखाती है, जैसा कोई नहीं देख पाया.

फिर उसने वहां के घरों के अंदर की फोटोज खींचनी शुरू की पहले तो उन्हें काफी डांट पड़ी लेकिन धीरे-धीरे महिलाओं को उन पर विश्वास हुआ और उन्होंने फोटोज खींचने की इजाजत दे दी.

सिर्फ एक सेक्सवर्कर के बच्चे होने की वजह से लोगों से काफी ताने सुनते हैं ये बच्चे जो कि इन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं. यही वजह है कि ये लोगों को अपनी पहचान नहीं बताना चाहते हैं.

समाज को आज नहीं तो कल ये स्वीकार करना ही होगा कि ये सेक्स वर्कर्स किसी बाहर की दुनिया से नहीं आते हैं बल्कि इसी समाज का हिस्सा होते हैं.

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The author N D Joshi

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