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कविता

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रेत का जीवन

रेत का जीवन
रेत का भी जीवन है
अपना संसार है
समाई धूप की गर्मी है
आसपास बिखरे कांटे हैं
कहीं रेत पर गुलिस्तां बने
कहीं ताल तलैया खुदे
कहीं गगनचुंबी इमारतें हैं
खेत किनारे रेललाइन है
इसी रेत में पनपे पेड़ हैं
मंदिर इसी पर खड़े
मस्जिद इस पर बनी
गुरुद्वारे-चर्च भी रेत पर
घर भी बनाये हैं लोगों ने रेत पर
सपने भी बुने हैं लोगों ने रेत पर
हवा जब बहती है तेज रेत भी उड़ती है
रेत पर लहराता जीवन संवरता रहता
नश्वर यह संसार रेत में ही मिल जाता
रेत का ही जीवन है
– मोहन थानवी

रेत का जीवन … कविता सुनाते मोहन थानवी ; बीकानेर
रेत का जीवन
रेत का भी जीवन है
अपना संसार है
समाई धूप की गर्मी है
आसपास बिखरे कांटे हैं
कहीं रेत पर गुलिस्तां बने
कहीं ताल तलैया खुदे
कहीं गगनचुंबी इमारतें हैं
खेत किनारे रेललाइन है
इसी रेत में पनपे पेड़ हैं
मंदिर इसी पर खड़े
मस्जिद इस पर बनी
गुरुद्वारे-चर्च भी रेत पर
घर भी बनाये हैं लोगों ने रेत पर
सपने भी बुने हैं लोगों ने रेत पर
हवा जब बहती है तेज रेत भी उड़ती है
रेत पर लहराता जीवन संवरता रहता
नश्वर यह संसार रेत में ही मिल जाता
रेत का ही जीवन है

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कविता

वह यूं ही भागता रहा

– मोहन थानवी

वह यूं ही भागता रहा

वह यूं ही भागता रहा उसके पीछे…
इंद्रधनुष को पकड़ने
वह कल से आज तक
भागता रहा
हर बार वह बस…
थोड़ी दूर ही रह गया
उसके हाथ न आया।

मंदिर-मस्जिद, चर्च-गुरुद्वारा
वह हर दिन जाता
शीश नवाता
प्रार्थना करता
प्रसाद पाता
प्रवचन सुनता।
शांति की चाह में
उद्वेलित मन से जाता
अषांत ही लौटता
वह भागता रहा
कल से आज तक
शांति की चाह में।

खेत-खलिहान में पसीना बहाया
पशुधन के साथ भरी दोपहरी
अंधेरी रातों में
टाट बिछा
धुआं-धुआं फिजां
धुंधलाती रोशनी
भूखा पेट
वह सालों से सोया
सोचता था
उठेगा तो सुनहरा कल होगा
नींद में जागा-जागा- सा…

…वह भागता रहा
सुनहरे भविष्य के पीछे

उसकी तमन्नाओं की तस्वीर
रंगों को तरसती रही
वह कुंची लिए
जीवन तलाशता रहा
केनवास पर उकेरी
रेखाओं को
गहरा देने की
उसकी
चाहत
बेनूर ही रही
चुनाव होते रहे
वह 55 का हो गया
बचपन के पीछे
भागता रहा

वह तरसता रहा
मां की गोद
पिता के स्नेह पाने
और दादा-दादी
नाना-नानी से कहानी
सुनने को
कापी-किताबों का बोझ
उसके बस्ते में था
ज्ञान पाने को बेताब
वह
रोजगार पाने के लिए
भागता रहा
निठल्ले लोगों के हुजूम के पीछे
भागता रहा
भागता रहा।

– मोहन थानवी

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कविता

गर्मी की लो छुट्टी आई (बच्चों के लिए कविता)

गर्मियों की छुटि्टयों पर यह कविता। आप भी लें इसका आनंद।

स्कूल की दूर हुई भागम-भगाई
गर्मी की लो छुट्टी आई।

आराम से उठ मैनें ली अंगड़ाई
गर्मी की लो छुट्टी आई।

मम्मी नहीं आज मुझ पर चिल्लाई
गर्मी की लो छुट्टी आई।

पिकनिक पर जा सब मौज मनाई
गर्मी की लो छुट्टी आई।

हाहा ठीठी संग करी मिल भाई
गर्मी की लो छुट्टी आई।

जमकर खेला लूडो, आई-स्पाई
गर्मी की लो छुट्टी आई।

टीवी, वीडियो से पापा ने पाबंदी हटाई
गर्मी की लो छुट्टी आई।

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