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कहानी

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समय का सदुपयोग जरूरी (कहानी)

सुमित ने बारहवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी कर कॉलेज में नया एडमीशन लिया था। कॉलेज जाने के लिए सुमित बहुत उत्साहित था। आज कॉलेज में उसका पहला दिन था। सुमित साफ-सुथरे नए कपड़े पहनकर कॉलेज पहुंचा। वह अपने क्लास रूम की ओर बढ़ ही रहा था कि उसका रास्ता रोकते हुए उसके सामने कॉलेज का एक पूर्व विद्यार्थी आकर खड़ा हो गया। उसने सुमित से कहा-‘ ‘हाय! मेरा नाम रॉबिन है और तुम्हारा?’’ सुमित हाथ आगे बढ़ाते हुए बोला- ‘‘हैलो! मैं सुमित।’’

रॉबिन ने अपना हाथ पीछे करते हुए कहा- ‘‘हाथ बराबर बालों से मिलाते हैं। वैसे तुम इस कॉलेज में नए आए हो तो हम सीनियर्स को सलाम तो करना ही पड़ेगा।’’ सीनियर्स का सम्मान करते हुए सुमित ने रॉबिन को सलाम किया और आगे बढ़ने लगा।

रॉबिन ने सुमित को क्लास की ओर जाने से रोकते हुए कहा- ‘‘ठहर जाओ महाशय। क्लास में जाने की इतनी भी क्या जल्दी है।’’ वह सुमित के कपड़ों को निहारते हुए बोला- ‘‘अमीर घराने के लगते हो। हमारे कॉलेज की कैंटीन में समोसे बहुत स्वादिष्ट हैं, आज समोसे तुम खिलाओगे।’’ सुमित ने बिना न नुकुर किए रॉबिन की बात मान ली और उसे व उसके दोस्तों को कॉलेज की कैंटीन में समोसे की पार्टी दे दी।

रॉबिन अब सुमित से खुश था वह बोला- ‘‘अच्छा अब जाओ क्लास में कहीं क्लास मिस न हो जाए।’’ सुमित जल्दी-जल्दी अपनी क्लास की ओर चल दिया। सुमित की क्लास में सभी विद्यार्थी बहुत होनहार और होशियार थे, साथ ही वहां लेक्चरर्स भी बहुत एजुकेटेड थे। सुमित मन लगाकर पढ़ाई करने लगा और उधर रॉबिन था कि उसने रोज-रोज नए स्टूडेंट्स को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वह कभी उनका टिफिन खा जाता तो कभी किसी की स्कूटी की चाबी मांगकर घंटों बाद उसे उसकी स्कूटी लौटाता।

सुमित की कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने को आई थी और कॉलेज के ही माध्यम से उसे एक अच्छी कंपनी में प्लेसमेंट भी मिल गया। कॉलेज के प्रोजेक्ट पूरे होते ही सुमित ने कंपनी ज्वाइन कर ली और अपनी बुद्धिमत्ता से वह जल्दी ही कंपनी का सीईओ भी बन गया।

उसकी कंपनी ने हाल ही में लिपिक के पदों पर भर्ती के लिए जॉब्स निकाली थी। इंटरव्यू लेने के लिए सुमित सहित कॉलेज का पैनल बैठा था। दो तीन इंटरव्यू के बाद जब रॉबिन का नाम पुकारा गया तो सुमित को हैरानी हुई और कुछ ही देर में उसने देखा कि उसके सामने रॉबिन अपने डॉक्यूमेंट्स की फाईल हाथ में लिए खड़ा था।

रॉबिन की नजर जैसे ही सुमित पर पड़ी वह उसे सीईओ की पोस्ट पर बैठा देखकर सकपका गया। वह बहुत शर्मिंदा था और आश्चर्यचकित भी। वह भी उसी कॉलेज में पढ़ा था जिसमें रॉबिन, किन्तु आज तक वह नौकरी के लिए भटक रहा था।

सुमित को देखते ही रॉबिन को कॉलेज की अपनी सारी बदमाशियां याद आने लगीं। अपनी बदमाशियों के बावजूद सुमित के सधे हुए और नम्रता भरे व्यवहार का स्मरण भी रॉबिन को हो आया था। सफलता की कुंजी अब रॉबिन को समझ में आ गई थी।

रॉबिन सुमित के सामने गिड़गिड़ाया सा खड़ा था। उसने अपनी गलतियों का पछतावा किया और बोला- ‘‘सुमित! यदि मैंने भी तुम्हारी तरह कॉलेज में जूनियर्स को परेशान करने और ऊलजुलूल हरकतें न करते हुए सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दिया होता तो शायद आज मैं भी अच्छे नंबरों से पास हो जाता और नौकरी के लिए यहां वहां नहीं भटक रहा होता।’’

रॉबिन की आंखों में आंसू थे उसे बहुत पछतावा हो रहा था। वह चुपचाप वहां से जाने को हुआ तभी सुमित ने उसे रोका और कहा- ‘‘रॉबिन! जो समय बीत गया उसे वापस तो नहीं लाया जा सकता किन्तु तुम्हारा पश्चाताप तुम्हें आगे बढ़ने में मदद कर सकता है। यदि तुम लगन से इस छोटी पोस्ट को भी स्वीकारोगे तो हो सकता है कंपनी में आगे तरक्की कर पाओ।’’

रॉबिन सुमित की अच्छाइयों से पहले से ही वाकिफ था उसने सुमित की बताई राह पर चलना बेहतर समझा और सुमित का शुक्रिया अदा करते हुए वहां नौकरी ज्वाइन कर ली।

सार: समय का सदुपयोग ही हमारे विकास की राह प्रशस्त करता है।

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ये रास्ते हैं जीवन के…

रेखाचित्र/ – मोहन थानवी

ये रास्ते हैं जीवन के…
पुल से स्टेशन विहंगम दिखा । तीनों प्लेटफार्म मानो छू सकता था । वहां गाड़ी की
प्रतीक्षा में मौजूद हुजूम से बतिया सकता था । देखते देखते प्लेटफार्म नं एक
पर गाड़ी आन पहुंची। कोई खास हलचल नहीं । एक दो ही लोग गाड़ी में जा बैठे । ये
पैसेंजर थी। गांव जाने के लिए जरूरी और मजबूरी में ही लोग इसमें यात्रा करते
हैं । तभी तीन नं पर गाड़ी के पहुंचते पहुंचते लोग डिब्बों में घुसने लगे । पलक
झपकी न झपकी 100-200 लोग गाड़ी में बैठे दिखे । ये बड़े शहरों में जाने वाली
एक्सप्रेस है । इससे लोग बिना मकसद दिखावा करने या सिर्फ घूमने के लिए भी जाते
हैं । दो नं प्लेटफार्म लोगों के होते हुए भी शांत दिखा । वहां गाड़ी पहुंची तो
कुछ देर तक लोग डिब्बों में झांकते रहे । पसंदीदा जगह दिखी तो 10-15 लोगों ने
अपना सामान वहां जमाया फिर खुद भी बैठ गए । ये गाड़ी तीर्थयात्रा स्पेशल थी ।
इसमें जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर जीने वाले ही यात्रा करते हैं । अपना सामान
यानी विचारों का आदान प्रदान कर तीर्थ करते हैं ।
पुल से आहिस्ता आहिस्ता उतर कर नाचीज ने अपना सामान इंजन से चौथे डिब्बे में
जमा लिया ।
– मोहन थानवी

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डार ( सिंधी कहानी )

सिंधी कहानी
डार
– मोहन थानवी

घर-बार छदणि खां पोइ सुखेमल जो सुख घटि थी वियो। जाल बेपरावाह थी वियसि। पाणि सुखो त सुभुह जो नवें लगे आफिस वेन्दो आहे, पुठ्यां जाल मीनाक्षी फोन खणी वेठी साइरिनि सां गाल्हाइन्दि रहन्दी आहे। कंहिं-कंहि दिहं सुखो आफिस मूं जल्दी अची दिसन्दो आहे – घर में ताश जी महफिल-रौनक। किटी पार्टीअ में शिरकत कन्दड़ माइयूं एं पाड़े वारनि जी अख्यिनि में उनजे करे खिल। तिरस्कार।
बाबे जो घर छदणि सुखे खे हाणे दुखे प्यो। हिकु पुटि थी करे बि उन बाबे जे शीशे जेहिड़े दिल खे दुखायो। सुखे जी माउ छह महीना पहिरियूं सुखे जी शादी करे गुजर करे वेई। बीमार हुई। इन करे पंहिंजी मासीअ जी धीअ जे सावरे घरूं सुखे जी घुर मोटाये कोन सघी। मीनाक्षी बि पढ़हयलि-लिखयलि आहे। सुखो बैंक में कैशियर आहे। सुखे पंहिंजी माउ खां पोइ दह दिह बि उनजो सोग न रख्यो। बाबे जो घर वदो आहे। चार रूम। पर दिल सां सुखो एं मीनाक्षी नन्ढुड़ा । अच-वं´ एं खादे-पीते में पंहिंजी सिन्धु जी परम्पराउनि खे मनणि वारो उनजो बाबो आतूमल मीनाक्षीअ खे जींस-टीशर्ट पाइणिजी मोकल कोन दिनी। कलेश प्यो। सुखे यकदम घर छदे जाल जो सुख दिठो। आतूमल 45 सालनि जो आहे। सुखो 21 सालनि जो। बिनी सिन्धु कोन दिठी। पर आतू रोज लालसाईंअ जे मन्दर वेन्दो आहे। संत कंवरराम जा भजन कुझन्दो आहे। सिन्धी पंचायत जो सेक्रेटरी आहे।
अजु सुखो पंजें लगे घर पहूंतो। दिठई मीनाक्षी घर कोने। पाड़े वारनि मूं हिक जणो अची सुखे खे बुधाए वियो – मीनाक्षी जी तबीयत बिगड़ी वेई हुई। उनजो भाउ उनखे इस्पाताल कोठे वियो आहे। सुखे देर कोन कई। इस्पाताल पहूंतो त खबर पयसि उनखे पुटि जमण वारो आहे। मीनाक्षी दिहनि सां आहे।
मीनाक्षी एं सुखे सिन्धी समाज जे बियनि लोकनि सां बि इन विचु रस्तो कोन रख्यो हुयो। बैंक में गढुकमु कड़हन्दड़ एं मीनाक्षीअ जियूंसाइरियूं ब डिह उननि जो हाल-चाल पूछो पर पोइउवे दांहं दिसणि लगा। वक्त-बे-वक्त घुरज ते को बि अग्यिं कोन प्यो अचे। सुखे खे हाणे पंहिंजो बाबो एं पंहिंजो समाज याद आयो। उननि सुखे एं मीनाक्षीअ खे वरी कबूल करणि में देर कोन कई। चयाउं त उवे हमेशा दिलु में हुवा। दूर त वया इ कोन हा। झूलेलाल।
आतूमल पंचायत में सेक्रेटरी हुजणि सबबि अजु मन्दर में सिन्धी बोलीअ जे वाधारे लाइपेपर प्यो वाचे। उन वेल मीनाक्षी एं सुखो बि मौजूद हुवा समाज जे हिक माणूअ आतूमल खे मेणो दिनो – तव्हां जो पंहिंजो पुटि-नूंअ घर में सिन्धी कोन था गाल्हायनि। तव्हां बेनि खे उपदेश था दियो।
आतूमल गाल्हि ठाहे वड़ती। चंवई -इन करे इ त मूखे फुरनो (चिंता) आहे। मूं दिठो आहे त नई टेहीगढुरहणि न थी पसन्द करे। सिन्धी बोली बि गाल्हायणि सां परहेज अथसि। सिन्धु जी परम्पराउनि सां परे थी भजे। इयो मुंहिंजे घर में लकाव आहे। मां इया तिणकि (डार) सभनि जे घरनि में दिसी करे इ त चवां थो – पहिरियूं बोली संभारियो। पंहिंजी सिन्धु जा दिहं-वार-त्योहार मनायो। शहीद हेमूं कालाणी, कंवरराम, शाह-सामी-सचल जा चवयलि अखर याद कयो। समाज में आयलि इन तिणकि खे हाणे भरणि जरूरी आहे।
पंचायत जे हिक मेम्बर चवो – शीशे जी तिणकि कीअं भरे सघबि।
आतूमल मुश्कियो; चवईं – फ्रेम मजबूत करे। फ्रेम मजबूत हून्दो त तिणकियलि शीशो बि शिक्ल दिखारीन्दो। फ्रेम कसजी वेन्दो त डार बि शीशे खे विरहांङणि कोन दिन्दी।
सुखो एं मीनाक्षी इन गाल्हि खे समझी विया। हाणे हू सिन्धी गाल्हाइन्दा आहिनि। सभि सां गडु रहन्दा आहिनि।

– मोहन थानवी

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पहली तारीख

डोरबैल बजी तो रेखा ने दरवाजा खोला. न्यूजपेपर वाला हाथ में पेपर लिए किसी से फोन पर बात कर रहा था. रेखा ने उस के हाथ से अखबार ले दरवाजा बंद किया ही था कि फिर से डोरबैल बजी. जैसे ही रेखा ने दरवाजा खोला तो अखबार वाला बोला, ‘‘मैडम, यह हिंदी का अखबार. आप के घर हिंदी और अंगरेजी 2 पेपर आते हैं.’’

‘‘अरे, फिर तभी क्यों नहीं दे दिया?’’

‘‘जब तक देता, आप ने दरवाजा ही बंद कर दिया,’’ अखबार वाला बोला.

‘‘अच्छा, ठीक है,’’ कह रेखा ने अखबार ले कर दरवाजा बंद कर दिया. तभी विपुल यानी रेखा के पति का शोर सुनाई दिया.

‘‘अरे भई कहां हो?’’ रेखा के पति विपुल की आवाज आई.

तभी डोरबैल भी बजती है. रेखा परेशान सी दरवाजा खोलने चल दी. दरवाजा खोला तो सामने वही अखबार वाला खड़ा था. अब रेखा ने गुस्से से पूछा, ‘‘अब क्या है?’’

‘‘मैडम, वह अखबार का बिल,’’ अखबार वाला बोला.

‘‘पहले नहीं दे सकते थे?’’ गुस्से से कह रेखा ने दरवाजा बंद कर दिया.

उधर विपुल आवाज पर आवाज लगाए जा रहा था, ‘‘रेखा, तौलिया तो दे दो, मैं नहा चुका हूं. कब से आवाजें लगा रहा हूं.’’

रेखा ने तौलिया पकड़ाया ही था कि फिर से डोरबैल बजी. दरवाजा खोलते ही रेखा गुस्से में चीखी, ‘‘क्यों बारबार बैल बजा रहे हो?’’

‘‘मैडम, यह छोटीकाशी.’’

‘‘नहीं चाहिए,’’ कह रेखा दरवाजा बंद करने लगी.

तभी अखबार वाला बोला, ‘‘अरे, आप ने ही तो कल अखबार लाने को बोला था.’’

‘‘क्या ये सब काम एक बार में नहीं कर सकते?’’ कह रेखा ने जोर से दरवाजा बंद कर दिया.

‘‘इतनी देर लगती है क्या तौलिया देने में?’’ विपुल बोला.

‘‘मैं क्या करती, घंटी पर घंटी बजाए जा रहा था, तुम्हारा पेपर वाला.’’

‘‘लगता है तुम्हें पसंद करता है,’’ विपुल हंसते हुए बोला.

‘‘विपुल, मैं मजाक के मूड में नहीं हूं.’’

तभी फिर डोरबैल बजती है. रेखा गुस्से से दरवाजा खोल कर बोली, ‘‘अब क्या है?’’

सामने दूध वाला था. बोला, ‘‘मैडम दूध.’’

रेखा ने थोड़ा शांत हो दूध ले लिया.

‘‘अरे भई नाश्ता लगाओ. देर हो रही है. औफिस जाना है,’’ विपुल की आवाज आई.

रेखा आंखें तरेरते हुए विपुल को देख किचन में चली गई. विपुल किसी से फोन पर बात कर रहा था.

फिर डोरबैल बजी. रेखा ने झल्लाते हुए दरवाजा खोला.

‘‘मैडम, दूध का बिल,’’ दूध वाला बोला.

‘‘क्या परेशानी है तुम सब को? क्या यह बिल दूध के साथ नहीं दे सकते थे?’’ गुस्से में बोल रेखा ने बिल ले लिया.

‘‘क्या खिला रही हो नाश्ते में?’’ विपुल बोला.

रेखा बोली, ‘‘अपना सिर… घंटी पर घंटी बज रही… ऐसे में क्या बन सकता है? ब्रैडबटर से काम चला लो.’’

‘‘अरे, तुम्हारे हाथों से तो हम जहर भी खा लेंगे,’’ विपुल ने कहा.

‘‘देखो, मैं इतनी भी बुरी नहीं हूं,’’ रेखा बोली.

तभी फिर से डोरबैल बज उठी. रेखा गुस्से से बोली, ‘‘विपुल, दरवाजा खोलो… फिर मत कहना मुझे औफिस को देर हो रही है.’’

विपुल ने फोन पर बात करते हुए ही दरवाजा खोला. दूध वाला ही खड़ा था.

दूध वाला बोला, ‘‘साहब, हम कल दूध देने नहीं आएंगे.’’

‘‘जब दूध दिया था तब नहीं बता सकते थे?’’ विपुल ने डांटा.

‘‘सर, भूल गया था.’’

विपुल औफिस चला गया. औफिस पहुंच कर उस ने रेखा को फोन किया. तभी फिर घंटी बज उठी. रेखा जब दरवाजा खोलने पर पेपर वाले को देखती है, तो उस का गुस्सा 7वें आसमान को छू जाता है. विपुल फोन लाइन पर ही था. अत: बोला, ‘‘अरे, रेखा अब कौन है?’’

‘‘वही तुम्हारा पेपर वाला.’’

‘‘यह क्या बना रखा है… क्या सारा दिन दरवाजे पर ही बैठे रहें एक चौकीदार की तरह?’’

‘‘अब क्या लेने आए हो?’’ रेखा तमतमाते हुए बोली.

‘‘सुबह के 50 दे दो… फिर से नहीं आऊंगा,’’ पेपर वाला बोला.

‘‘कोई 50 नहीं मिलेंगे. चले जाओ यहां से,’’ रेखा ने कहा.

इस बीच फोन कट गया था. वह नहाने जा ही रही थी कि फिर से डोरबैल की आवाज पर भिन्ना गई. दरवाजा खोला तो सामने केबल वाला खड़ा था.

‘‘मैडम, केबल का बिल,’’ वह बोला.

‘‘कुछ और देना है तो वह भी दे दो.’’

‘‘मैडम, समझा नहीं,’’ वह बोला.

‘‘कुछ नहीं,’’ रेखा ने जोर से दरवाजा बंद कर दिया और फिर नहाने चली गई.

तभी उसे कुछ शोर सुनाई देता है. ध्यान से सुनने पर, ‘मैडमजी, मैडमजी,’ एक लड़की की आवाज सुनाई दी.

नहा कर दरवाजा खोला तो सामने नौकरानी की लड़की खड़ी थी.

रेखा ने पूछा, ‘‘क्या चाहिए?’’

‘‘मैडमजी, मम्मी आज काम पर नहीं आएंगी. शाम को जिस औफिस में सफाई करती हैं, वहां पगार लेने गई हैं… वहां लंबी लाइन लगी है.’’

रेखा गुस्से में बोली, ‘‘अच्छाअच्छा, ठीक है.’’

‘इसे भी आज ही…’ रेखा मन ही मन बड़बड़ाई और फिर सोचने लगी कि आज खाने में बनेगा क्या… इतनी देर हो गई है… घड़ी की तरफ देखा 1 बज चुका था. अभी सोच ही रही थी कि फिर घंटी बजी. वह चुपचाप यह सोच बैठी रही कि अब दरवाजा नहीं खोलेगी. 2… 3… 4… बार घंटी बजी पर वह नहीं उठी.

तभी फोन बजा. विपुल बोला, ‘‘अरे भई, क्या हम यहीं खड़े रहेंगे… दरवाजा तो खोलो.’’

रेखा मन ही मन सोचती कि इतनी जल्दी कैसे आ गए? क्या बात है? फिर जल्दी से दरवाजा खोला.

‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं?’’ विपुल बोला.

‘‘अरे, आप इतनी जल्दी कैसे आ गए?’’

‘‘कैसे आ गए. तुम सुबह से परेशान थीं. सोचा, चलो आज लंच बाहर ही करते हैं.’’

रेखा सवाल भरी निगाहों से विपुल की तरफ देखने लगी तो वह बोला, ‘‘अरे बावली, आज पहली तारीख है..!

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कोख का मुआवजा

शिखा की निगाहें भीड़ में अपनी बेटी को ढूंढ़ रही थीं. आज स्कूल का ऐनुअल फंक्शन था. रंगबिरंगी पोशाकें पहने बच्चे स्टेज पर थिरकते बड़े प्यारे लग रहे थे.

‘‘अरे मां, वह देखो अपनी पिहुल सब से आगे खड़ी है,’’ खुशी के आवेश में शिखा भूल गई कि पीछे और भी पेरैंट्स बैठे हैं.

राष्ट्रगान के साथ समारोह समाप्त हो गया. अब बच्चों को उन की क्लास से लेना था. अत: शिखा मां से बोली, ‘‘आप गाड़ी में जा कर बैठो, मैं पिहुल को ले कर आती हूं.’’

क्लास में जा कर शिखा ने पिहुल को लिया. सीढि़यों पर काफी भीड़ थी. धक्कामुक्की से सीढि़यों पर उस का पर्स गिर गया.

तभी नीचे से आती एक महिला ने उस का पर्स उठा कर उसे देते हुए कहा, ‘‘यह लीजिए अपना पर्स. ये पेरैंट्स ऐसे ही होते हैं… सभी को अपने बच्चे को ले जाने की जल्दी है.’’

‘‘थैंक्यू,’’ कह जैसे ही शिखा ने उस औरत की तरफ देखा तो हैरानी से बोली, ‘‘अरे सीमा तुम यहां कैसे?’’

‘‘हां शिखा, पहचान गई… यह तुम्हारी बेटी है क्या? बड़ी प्यारी है,’’ कह सीमा पिहुल को प्यार करने लगी.

शिखा पिहुल का हाथ पकड़ बोली, ‘‘पिहुल चलो, दादी बाहर हमारा इंतजार कर रही हैं.’’

सीमा शिखा को कार में जाते देखती रही. उस की शानोशौकत, पहनावा और महंगी गाड़ी देख कर सीमा के मन में लालच आ गया. उस ने स्कूल से शिखा के घर का पता और फोन नंबर ले शिखा को फोन किया. पहले तो उस ने शिखा से नौर्मल बातचीत की, फिर असली मुद्दे पर आ गई. साफसाफ लफ्जों में बोली, ‘‘देखो शिखा, मुझे ज्यादा घुमाफिरा कर बात करना नहीं आता. मुझे 5 हजार की जरूरत है. तुम मुझे रुपए दे दो.’’

‘‘तुम्हें रुपए क्यों दूं?’’ शिखा गुस्से में बोली.

‘‘पैसा तो तुम मुझे दोगी और वह भी खुशीखुशी वरना मैं तुम्हारी बेटी को सारी सचाई बता दूंगी,’’ कह सीमा ने फोन काट दिया.

फोन कटते ही शिखा वहीं सोफे पर पसर गई. सीमा इतना गिर जाएगी इस की उसे उम्मीद न थी. फिर सोचने लगी कि क्या करूं घर में सब से बात करूं या उसे रुपए दे कर चलता करूं?

तभी सासूमां की आवाज सुनाई दी, ‘‘अरे बहू, तुम वहां सोफे पर आराम कर रही हो और उधर गैस पर दूध उफन रहा है.’’

शिखा घबरा कर उठ खड़ी हुई और फिर बोली, ‘‘अभी साफ करती हूं मांजी.’’

शिखा गैस साफ करते हुए सोचने लगी कि मैं सीमा को रुपए दे कर छुटकारा पा लेती हूं. क्यों बेकार में सब को परेशान करना… कल मैं जा कर उस की बताई जगह पैसा दे आऊंगी.

दूसरे दिन शिखा ने सीमा को रुपए दे दिए और साथ ही सख्त हिदायत भी दी कि वह उसे दोबारा फोन न करे.

सीमा रुपए ले कर बड़ी अदा से मुसकराती हुई वहां से चली गई.

1 महीना शांति से बीत गया. न सीमा का फोन आया और न ही उस से मुलाकात हुई. शिखा ने सोचा कि चैप्टर अब क्लोज हो गया है. मगर एक दिन जब शिखा ब्यूटीपार्लर से लौटी तो ड्राइंगरूम से काफी शोर आता सुनाई दिया. उत्सुकता से अंदर झांका तो पिहुल को सीमा की गोद में बैठे हंसता पाया. मां भी खूब हंसहंस कर बातें कर रही थीं. उसे देखते ही बोलीं, ‘‘बहू, इधर आओ. देखो इन का बेटा अपनी पिहुल के स्कूल में ही पढ़ता है. आज जब मैं पिहुल को लेने गई तो औटो वालों की हड़ताल होने के कारण मैं अपनी गाड़ी में साथ ले आई और कहा कि चाय पी लो. हम तुम्हें ड्राइवर से घर छुड़वा देंगे.’’

शिखा ने सुन कर भी अनसुना कर दिया और फिर सीमा को घूरती हुई अंदर जाने लगी.

तभी मां बोलीं, ‘‘मैं ने चाय चढ़ा दी थी. तुम ले आओ.’’

चाय छानतेछानते शिखा सोचती जा रही थी कि इस ने पिहुल से क्याक्या बता दिया जो पिहुल इतना प्यार करने लगी, क्योंकि पिहुल जल्दी किसी से बात नहीं करती थी.

चाय पी कर सीमा लौटते हुए बोली, ‘‘कल मिलते हैं.’’

कल फिर सीमा से मुलाकात हुई और अंदेसा सही निकला कि उस ने फिर बड़ी कुटिलता से रुपयों की मांग की. इस बार उस ने क्व10 हजार की मांग रखी. इस बार भी शिखा ने उसे सब से छिपा कर रुपए दे दिए. सीमा अब यह समझ चुकी थी कि शिखा बिना घर में किसी को बताए रुपए दे रही है, इसलिए रुपए मांगना ज्यादा आसान नहीं है. जिस दिन इस का पता सभी को चलेगा तो यह रुपए देना बंद कर सकती है. खैर, तब तक तो रुपए निकलवा लूं. और फिर कुटिलता से हंसने लगी.

शाम को शेखर औफिस से लौट कर शिखा से बोला, ‘‘चलो, कहीं बाहर घूमने चलते हैं, वहीं डिनर कर के वापस आएंगे.’’

पिहुल खुशी से पापा से लिपट कर बोली, ‘‘हम भी चलेंगे.’’

सुहानी शाम में वे सभी एक बड़े गार्डन में आराम से कुछ पल सुकून से बिताने के लिए बैठ गए. पिहुल पार्क में खेलने लगी.

शेखर शिखा से बोला, ‘‘याद है हम दोनों पहली बार इसी पार्क में मिले थे?’’

‘‘हां, अच्छी तरह याद है,’’ शिखा बोली.

फिर दोनों बातें करतेकरते अतीत की गहराइयों में उतरते चले गए…

बनारस की गलियों की वह शाम. बनारस की तंग गलियों के बीच एक गली

ऐसी भी थी जो सफेद रोशनी से नहाई थी. एक पुराना कोठीनुमा मकान दुलहन की तरह सजा था. हर कोई अपने में मस्त इधरउधर भाग रहा था. सभी शादी की तैयारी में मग्न थे, बच्चे खेल रहे थे, सजीधजी महिलाएं आपस में एकदूसरे को अपनेअपने गहने दिखाने में मशगूल थीं.

तभी एक सुंदर सी मगर रोबदार महिला सभी को डांटते हुए बोली, ‘‘अरे, तुम लोगों ने शेखर को बुलाया नहीं… भाग कर जाओ और जल्दी से शेखर को बुला लाओ, समय निकला जा रहा है.’’

तभी एक सुंदर युवक, जो पीला कुरता और सफेद पाजामा पहने था, आंगन में दाखिल हुआ और बोला, ‘‘अरे मां, आप का शेखर हाजिर है,’’ और फिर उस ने मां के गले में बांहें डाल दीं.

मां ने बड़े प्यार से शेखर को देखा और फिर बोलीं, ‘‘कितना सुंदर लग रहा है मेरा बेटा…’’

आज शेखर की शिखा के साथ शादी है. बड़ी धूमधाम से दोनों का विवाह संपन्न हुआ. शिखा की सास तो शिखा जैसी सुंदर और सुशील बहू पा कर धन्य हो गईं थीं. शेखर का भी हाल कुछ ऐसा था कि उस के पास भी शिखा को प्यार करने के लिए चौबीस घंटे कम पड़ रहे थे. उसे लगता शिखा बस सारा टाइम उसी के पास बैठी रहे. शेखर की मां हर आनेजाने वाले से अपनी बहू की तारीफ करते नहीं थकती थीं.

शिखा को ये सब देख कर लगता कि सारा जहां उस के आंचल में सिमट आया है. 1 हफ्ता कब बीत गया पता ही नहीं चला. अब तक सारे मेहमान जा चुके थे.

कुछ ही दिन बाद शिखा के भाई और पिताजी शिखा को लेने आए तो शेखर का मन शिखा को छोड़ने को तैयार नहीं हुआ. शाम को शिखा से रोंआसा हो कर शेखर बड़े प्यार से बोला, ‘‘यार, मैं तो तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता… तुम कुछ ऐसा करो कि मेरे ही साथ चलो और मेरे ही साथ वापस आ जाओ.’’

शेखर इतने प्यार से बोला था कि शिखा को भी उस पर प्यार आ गया और फिर शेखर की आंखों में आंखें डाल कर बोली, ‘‘क्या बात है जनाब? पहले तो आप ऐसे न थे? मैं ने तो सुना है कि लव मैरिज में शादी के बाद प्यार कम हो जाता है पर जनाब के इरादे तो कुछ और बयां कर रहे हैं,’’ और फिर गाल पर किस कर लिया.

शेखर बोला, ‘‘अरे यार, तुम्हें तो मजाक लग रहा है इधर मेरी जान निकल रही है.’’

‘‘अच्छाअच्छा, ठीक है, मैं कल मां से बात करूंगी.’’

शिखा ने मां से कहा, ‘‘कल मैं और शेखर साथ ही अपने घर जाएंगे. 2-3 दिन साथ रह कर वापस आ जाएंगे, क्योंकि मुझे भी कुछ जरूरी काम है.’’

मां बहू की मंशा समझ गईं. हंसते हुए बोलीं, ‘‘अच्छा ठीक है,’’ कह शिखा के पिता से बोलीं, ‘‘कल हमारे यहां कुछ काम है. फिर शेखर शिखा को ले कर इलाहाबाद पहुंच जाएगा. उधर 2-3 दिन रह कर वहां से साथ आ जाएंगे.’’

‘‘ठीक है, शेखर भी आएगा तो हम सब को भी अच्छा लगेगा,’’ शिखा के पिताजी बोले. फिर शिखा के पिता व भाई उसी दिन शाम की गाड़ी से वापस चले गए. दूसरे दिन शिखा और शेखर को निकलना था. शेखर अपनी नई कार से ससुराल जाना चाहता था पर मां का मन नहीं था. फिर भी बेटे की खुशी के लिए हां कह दी

शादी के बाद दोनों पहली बार इस तरह जा रहे थे. शिखा ने लाल रंग की साड़ी पहन रखी थी. ढेर सारे जेवरों में वह और भी सुंदर लग रही थी. रास्ते में शेखर उसे बारबार देख रहा था. दोनों अपनी मस्ती में दुनिया से बेखबर हो चले जा रहे थे. तभी सामने से एक अनियंत्रित ट्रक तेजी से चला आ रहा था. आसपास गाड़ी वालों ने काफी आवाजें दीं पर अपनी दुनिया में खोए और तेज म्यूजिक की आवाज में दोनों सुन नहीं पा रहे थे. जब तक कुछ समझ पाते एक तेज आवाज के साथ सब कुछ शांत हो गया. आंख खुली तो अपने को अस्पताल में पाया. शिखा भी पट्टियों से बंधी लेटी थी. पास में परिवार के सभी लोग थे.

मां बोलीं, ‘‘कैसे हो बेटा?’’

‘‘ठीक हूं मां बस…’’ शेखर बोला.

शुक्र है कि इतने भयानक हादसे के बाद भी दोनों बच गए थे. शिखा के पैर में फ्रैक्चर हो गया था. शिखा 3 महीने बिस्तर पर रही. इस दौरान शेखर ने उस की बहुत सेवा की. हर समय पास रहने की कोशिश करता. सास ने भी बहुत देखभाल की. यह बुरा वक्त कब बीत गया पता ही नहीं चला. अब सब कुछ सामान्य था.

शादी के 3 साल होने को हैं. सास अब अपने आंगन में नई खुशियों की बाट जोहतीं और शिखा से मुसकरा कर खुशखबरी की लालसा भरी निगाहों से मौन स्वीकृति मांगतीं. पर इस पर विलंब होता चला गया. मां के कहने पर दोनों डाक्टर से मिले और बहुत सारे मैडिकल टैस्ट कराए. डाक्टर ने अकेले में शेखर को बुलाया पर शेखर कहां अकेला जाने वाला था. वह शिखा को भी साथ ले कर घबराता हुआ डाक्टर के पास गया. डाक्टर ने कहा कि लगता है शिखा को कभी गहरी चोट लगी थी, जिस की वजह से वह अब मां नहीं बन सकती.

शिखा की आंखों में आंसू भर आए. उस के आंसू गिरते उस से पहले ही उस ने अपने को मजबूत करते हुए शेखर को सहारा दिया और अपने बाएं हाथ से शेखर का हाथ थामा जैसे कहा हो कि सुखदुख में हम साथसाथ हैं.

तभी डाक्टर साहब उन दोनों के मन की बात भांप गए और बोले, ‘‘क्यों परेशान हो? आजकल तो बहुत से साधन और उच्च मैडिकल तकनीकें हैं जिन से आप मां बन कर बच्चे का सुख ले सकती हैं. आजकल बहुत सी सैरोगेट मदर मिल जाएंगी जो आप के बच्चे के लिए अपनी कोख किराए पर दे देंगी.’’

‘‘पर… डाक्टर साहब…’’ शेखर ने परेशान हो कर डाक्टर से कुछ कहना चाहा.

डाक्टर साहब ने कहा, ‘‘वह बच्चा आप दोनों का ही होगा, बस उस का घर किराए का होगा.’’

एक उम्मीद लिए शेखर घर वापस आया और सब से बात की. जो मां कल तक शेखर को गले लगाए घूमती थीं आज उस की खिलाफत में थीं और दिन भर कहती रहतीं, ‘‘साइंस ने तो आज मां और ममता दोनों को बेच दिया. अरे, वह हमारे वंश का थोड़े कहलाएगा, किस का खून होगा उस में, उस बच्चे में पता नहीं किस मां के संस्कार आएंगे. हमारे घर में यह सब गलत काम नहीं होगा.’’

शेखर अब काफी उदास रहने लगा था. देर रात शराब पी कर आता और जब शिखा दरवाजा खोलती तो वह पूरी कोशिश करता कि शराब की बू बाहर न आए और शिखा हमेशा की तरह कहती कि आप अपनी गलती छिपाने का शुतुरमुर्गी प्रयास क्यों कर रहे हैं? रोज घर आ कर वह सीधा अंदर जा कर बिस्तर पर लेट जाता. पर पास लेटी शिखा के दिमाग में बिना किसी प्रयास के उस की जिंदगी के कई दृश्य एक के बाद एक आने लगते.

उस ने निश्चय किया कि वह शेखर की ऐसी हालत नहीं देख सकती और कल ही डाक्टर से जा कर बात करेगी, क्योंकि 2 दिन पहले ही उसी डाक्टर का फोन आया था कि वे एक जरूरतमंद औरत को जानते हैं, जो उन के लिए अपनी कोख किराए पर दे सकती है.

दूसरे ही दिन दोनों सुबह तैयार हो कर डाक्टर के क्लिनिक पहुंच गए. 29-30 साल की एक युवती डाक्टर के पास बैठी थी. देखने में भले घर की लग रही थी. जैसे ही दोनों पहुंचे डाक्टर ने परिचय कराया, ‘‘शिखा, ये हैं सीमा, जो आप के बच्चे के लिए सैरोगेट मदर बनने को तैयार हैं.’’

शिखा बोली, ‘‘डाक्टर साहब, मैं इन से अकेले में कुछ बातें करना चाहती हूं.’’

‘‘जरूर… जरूर… आप दोनों बातें करिए तब तक मैं और शेखर भी कागजी काररवाई पूरी कर लेते हैं,’’ और फिर दोनों बाहर चले गए.

थोड़ी देर तक सन्नाटा पसरा रहा. फिर सन्नाटे को तोड़ती हुई शिखा बोली, ‘‘तो आप का नाम सीमा है?’’

‘‘हां.’’

‘‘आप के घर में और कौनकौन हैं?’’ शिखा ने शंका करते हुए पूछा, ‘‘आप को क्या आवश्यकता पड़ी जो आप ने यह फैसला लिया?’’

सीमा अब तक चुपचाप सिर झुकाए बैठी थी. सीमा उम्र में शिखा से 3-4 साल

बड़ी थी. सांवली रंगत, तीखे नैननक्श, खादी की सादी साड़ी मगर बड़े सलीके से पहने हुई थी. तभी उस के बड़ी मुश्किल से बोल फूटे, बोली, ‘‘मेरे घर में पति और 1 छोटा बेटा है. मेरे पति प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे, मगर कंपनी के घाटे में जाने के कारण उस ने कर्मचारियों की छंटनी कर दी, जिस में हमारे उन का भी नाम आ गया. हमारे पास कुछ भी जमापूंजी नहीं है… नए कारोबार के लिए पैसा तो चाहिए ही. मैं डाक्टर साहब के घर के पास ही रहती हूं. इन से हमारे दुख छिपे नहीं हैं. इन्होंने ही आप के बारे में बताया और मुझे और मेरे पति को समझाया. शुरू में तो वे इस के खिलाफ थे पर डाक्टर साहब ने बताया कि अपना बच्चा पैदा करना और सैरोगेसी से पैदा करने में बहुत फर्क है. इस में केवल मुझे शारीरिक तकलीफ होगी पर बदले में 2 लाख भी तो मिलेंगे, जिन से हम नया काम शुरू कर सकेंगे.

9 से 10 महीनों में हमारा जीवन दोबारा पटरी पर आ जाएगा. मुझे लैब में तैयार भ्रूण अपने गर्भ में डालना होगा और उसे पालना होगा. इस दौरान कोई गैरमर्द मुझे छुएगा तक नहीं और अस्पताल का खर्च भी वही लोग उठाएंगे,’’ यह सब कह कर सीमा ने गहरी सांस ली.

शिखा चुपचाप सब सुन रही थी. सीमा की बात में उस का निर्णय और उसे मनवा लेने की व्यग्रता साफ दिख रही थी.

तभी डाक्टर और शेखर वापस आ गए. डाक्टर ने सीमा को बौंड देते हुए कहा, ‘‘ठीक से पढ़ लो और साइन कर के दे दो.’’

सीमा बौंड पर साइन कर ही रही थी कि उस की एक आंख की कोर से आंसू टपक कर बौंड पर गिर गया और लिखे शब्द को धूमिल कर गया, पर सीमा की जिंदगी में उजाला भर गया. सीमा ने अपनी नजरें धीरे से ऊपर कीं और पास खड़े अपने पति से मौन स्वीकृति ले बौंड पर साइन कर दिए. फिर पूछा, ‘‘कब आना है?’’

‘‘कल 10 बजे सुबह मेरे साथ ही आ जाना,’’ डाक्टर साहब बोले.

शिखा बहुत खुश थी. उसे तो बस सुबह का ही इंतजार था. रात में शिखा और शेखर काफी

देर तक बातें करते रहे. लेकिन मां बहुत नाराज थीं. आज तो उन्होंने खाना तक नहीं खाया था. उधर सीमा भी अपने बेटे को नानानानी के पास छोड़ आई.

सुबह तय समय पर सब अस्पताल पहुंच गए. सीमा की सारी जांचें हुईं और शिखाशेखर के भ्रूण को सीमा के गर्भ में प्रत्योरोपित कर दिया गया. इस के बाद सब शहर छोड़ कर हिल स्टेशन चले गए. इस दौरान शिखा इसी कोशिश में रहती कि सीमा ज्यादा से ज्यादा मेरे परिवेश में ही रहे. शिखा ने उस के कमरे में शेखर के बचपन की खूब सारी तसवीरें भी टांग दीं. वह हर समय सीमा को खुश रखने में लगी रहती. मगर जब सीमा के पास उस के बेटे और पति का फोन आता तो उस का चेहरा उदासी से भर जाता. उसे ये 9 महीने काटने बहुत मुश्किल लग रहे थे.

शुरू में पति मिलने आ जाता था पर अब उस ने भी धीरेधीरे आना कम कर दिया था.

सीमा वर्तमान से ज्यादा भविष्य के रिश्ते को ले कर चिंतित रहने लगी. इसी चिंता में एक दिन जब उस ने राकेश को फोन लगाया तो वह बोला, ‘‘अब मैं मिलने नहीं जाऊंगा, तुम अपना किराए का मकान खाली कर के खुद ही आ जाना. अब तो मैं तुम्हारा हाथ भी नहीं पकड़ सकता, दम घुटता है वहां मेरा…’’ और झल्ला कर फोन काट दिया.

सीमा की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी, मगर जब गर्भ के अंदर 4 महीने के शिशु ने हरकत शुरू कर दी तो सीमा के अंदर मकानमालिक के बजाय मां के भाव जागने लगे. वह उस की हरकतों पर ध्यान देने लगी. उसे बच्चे पर प्यार आने लगा. पेट पर अपने दोनों हाथ रख कर घंटों बातें करती.

एक दिन तो फोन कर के राकेश को भी बताया कि यह तो अपने बच्चा जैसा शैतान है. बहुत हाथपैर चलाता है.

‘‘पर यह उस का भाई या बहन नहीं है,’’ बड़े उदास स्वर में राकेश बोला.

सीमा उदास हो गई क्योंकि सच तो यही है कि यह उस का नहीं शिखा का बच्चा है. इसी तरह 8 महीने पूरे हुए और 9वां महीना लगते ही डाक्टर ने औपरेशन कर दिया. सीमा ने प्यारी सी बेटी को जन्म दिया. उसे गोद में ले कर शिखा बोली, ‘‘शेखर, यह रही हमारी अपनी बेटी, बिलकुल तुम पर गई है.’’

इन 9 महीनों में सीमा भूल गई थी कि यह उस का बच्चा नहीं है. तय राशि ले कर वापस अपने घर चली गई. पैसा हाथ आते ही उस का उस बच्ची से प्यार भी गायब हो गया और अपने शहर पहुंच कर राकेश के साथ सीमा ने नया व्यवसाय शुरू कर दिया. अपने बेटे को भी शहर के अच्छे स्कूल में दाखिला दिला दिया. जीवन की गाड़ी फिर से पटरी पर आ गई.

उधर शिखा और शेखर के घर नन्ही सी राजकुमारी के आने से बहार आ गई. मां ने उस बच्ची को स्वीकार तो कर लिया पर अंदर ही अंदर वे बेटी के अपनेपन के द्वंद्व से घिरी रहतीं.

समय पंख लगा कर उड़ने लगा. देखतेदेखते पिहुल 7 साल की हो गई. पुराने दिनों को कब याद करतेकरते रात हो गई, उन्हें पता ही नहीं चला.

तभी पिहुल ने आ कर कहा, ‘‘पापा, खाना खाने नहीं चलना क्या?’’

पिहुल की आवाज सुन कर दोनों अतीत से बाहर आ गए.

‘‘शिखा क्या बात है, इधर कुछ दिनों से तुम कुछ परेशान लग रही हो? तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं शेखर.’’

कुछ दिनों में सीमा का फिर फोन आया तो शिखा ने सोच लिया कि फोन रिसीव नहीं करेगी. अत: फोन रिसीव नहीं किया. ऐसा कई दिनों तक चलता रहा.

सीमा अब अलगअलग नंबरों से फोन कर के शिखा को रुपए देने को मजबूर करने लगी. कुछ न कुछ मानसिक दबाव बना कर पैसे निकलवाती रही. उस की लगातार इस हरकत से एक दिन तंग आ कर शिखा ने गुस्से से फोन पटक दिया, जिस से वह खराब हो गया.

‘अच्छा हुआ अब कुछ दिनों तक चैन तो मिलेगा,’ शिखा ने मन ही मन सोचा.

आज शेखर का बर्थडे था. शिखा उस के लिए सरप्राइज पार्टी प्लान कर रही थी. तभी डोरबैल बजी. शिखा अपने शेखर के हसीन सपनों में खोई दरवाजा खोलने गई तो देखा सामने सीमा खड़ी थी.

‘‘अब तुम मेरे पास क्या लेने आई हो? अब न मेरे पास रुपए हैं और न ही जेवर. कुछ ही दिन पहले तुम मेरे हाथों की सोने की चूडि़यां भी ले गई हो.’’ शिखा बोली.

‘‘देखो शिखा, मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहती. अब आखिरी बार दे दो… तुम्हारे पास किस चीज की कमी है या कहो तो मैं पिहुल को उस की असली मां से मिला दूं.’’

शिखा बेचैनी से कमरे में इधरउधर टहलने लगी. एक ही पल में ऐसे मुरझा गई जैसे उस के शरीर में खून की एक बूंद भी न हो.

कुछ दिनों से शिखा के इस तरह के व्यवहार से सभी परेशान थे. शेखर भी उस से

चुभते सवाल करने लगा था. आज कितने दिनों बाद वह शेखर को खुशियां देना चाहती थी. सुबह से बहुत खुश थी, मगर इस सीमा नाम की मुसीबत ने आ कर सब बेकार कर दिया. कई सवाल उस के दिमाग में आ जा रहे थे.

तभी सीमा की आवाज से सवालों के उतारचढ़ाव से बाहर आ गई.

‘‘अरे वाह,’’ वहीं पास रखी चेन को देख कर सीमा बोली, ‘‘कितनी सुंदर चेन है.’’

शिखा बोली, ‘‘शेखर के लिए लाई हूं.’’

‘‘अरे वाह… अभी तो तुम्हारे पास रुपए नहीं थे और इतना महंगा गिफ्ट. अब तो यही मुझे चाहिए.’’

‘‘नहीं सीमा… यह शेखर के लिए उस का बर्थडे सरप्राइज गिफ्ट है.’’

‘‘चलो ठीक है, मैं तो स्कूल अपने बेटे को लेने जा रही हूं… तुम शेखर को सरप्राइज देना और मैं वहां पिहुल को… हिसाब बराबर हो जाएगा.’’

‘‘रुको सीमा,’’ शिखा ने कांपते हाथों से चेन सीमा को दे दी.

सीमा उसे तुरंत ले कर शिखा को घूरती हुई चली गई.

शिखा का मन अब हार चुका था. शाम को बुझे मन से पार्टी में शामिल हुई. शिखा के इस व्यवहार से शेखर भी उदास हो गया. वह बारबार यही सोचता कि शिखा ने मेरा गिफ्ट अब तक क्यों नहीं दिया. मेरे लिए लाई है या… शिखा का इस तरह जन्मदिन में उदास रहना शेखर को खलने लगा. उस ने तो यहां तक सोच लिया कि शिखा का कहीं अफेयर तो नहीं. उस की लाई सोने की चूडि़यां जिन्हें शिखा कभी नहीं उतारती थी आजकल उन्हें भी नहीं पहनती है… पूछने पर टाल देती है.

पार्टी के 1 दिन पहले उस के पर्स से मां की दवा का परचा ढूंढ़ रहा था. तभी उस में ज्वैलर्स का एक परचा मिला, जो सोने की चेन का बिल था. उस समय भी शेखर को लगा कि शायद शिखा उसे सरप्राइज देना चाह रही हो, इसलिए इस बारे में शिखा से कुछ नहीं पूछा.

पार्टी खत्म होने के बाद सब चले गए. मां पिहुल को आज अपने पास सुलाने ले गईं. वे भी चाहती थीं कि बेटेबहू में जो मनमुटाव चल रहा है वह शायद अकेले में साथ रह कर दूर हो जाए. उन्हें लगता कि पिहुल की वजह से दोनों एकदूसरे को टाइम नहीं दे पाते.

शिखा कमरे में आ कर कपड़े चेंज करने लगी. शेखर बिना कुछ बोले बिस्तर पर जा कर लेट गया. वह खुद ही बोली, ‘‘सौरी शेखर, मैं तुम्हारे लिए कोई गिफ्ट नहीं ला सकी. तुम्हें बुरा तो नहीं लगा?’’

शिखा का इतना बोलना था कि शेखर जो इतने दिनों से अपने सवालों के जवाब शिखा से चाहता था, एक झटके से उठा और पर्स से बिल निकाल कर शिखा की तरफ फेंकते हुए बोला, ‘‘यह क्या है?’’

शिखा फटी निगाहों से शेखर की तरफ देखने लगी.

‘‘शिखा, मैं बेवकूफ नहीं हूं… मैं इतने दिनों से तुम्हें देख रहा हूं… अब तो यह शक यकीन में बदल गया,’’ शेखर कमरे से बाहर जाने लगा. शिखा भाग कर उस से लिपट गई, ‘‘शेखर, तुम मेरे बारे में ऐसा कैसे सोच सकते हो? तुम ने यह जानने की कोशिश नहीं कि कि इतने दिनों से मेरी जिंदगी में क्याक्या चल रहा है,’’ और वह रोने लगी. शेखर के पास आते ही उस की हिम्मत जवाब दे गई. अब वह अपने दुख की जद से बाहर आना चाहती थी.

शेखर जो अब तक गुस्से में था उसे रोता देख कर पिघल गया. अपनी बांहों में लेते हुए बोला, ‘‘अच्छा अब तुम सारी बात बताओ.’’

शिखा ने सीमा की सारी बातें शेखर को बता दीं.

शेखर समझ गया कि सीमा शिखा का फायदा उठा रही है. सीमा अच्छी तरह जानती है कि शिखा उसे घर वालों से छिपा कर रुपए दे रही है. अत: उस ने कहा, ‘‘अब उस का फोन आए तो रुपए देने को हां कर देना… तुम बेकार में परेशान हो… पिहुल अभी बहुत छोटी है… सीमा उसे क्या बताएगी और पिहुल क्या समझ पाएगी कि सैरोगेट मदर क्या है… वह तो सिर्फ तुम्हारी कमजोरी का फायदा उठा रही है… वह तुम्हें फोन करेगी… अब तुम आराम से सो जाओ.’’

बहुत दिनों बाद शिखा को बहुत अच्छी नींद आई. रात भर शेखर के सीने पर सिर रख कर सोती रही.

कुछ दिनों बाद सीमा का फिर फोन आया. इस बार सीमा का लालच चरम पर था. उस ने शिखा से कहा, ‘‘मेरे पति को क्व5 लाख की जरूरत है. 2 दिनों में इंतजाम कर के हमें फोन कर देना.’’ सीमा को भी अब लग रहा था कि बारबार शिखा से रुपए निकलवाना आसान नहीं है, इसलिए क्यों न एक बार में ही मोटी रकम ले ली जाए.

शिखा ने तुरंत हामी भर दी. कल स्कूल के पास कौफी शौप में सुबह मिलने की बात तय कर ली. सुबह शिखा और शेखर अपनी बेटी और क्व5 लाख ले कर वहां पहुंच गए. और जाते ही सीमा को रुपए देते हुए शिखा बोली, ‘‘मैं अब तुम्हें और पैसे नहीं दे सकती. पिहुल तुम्हारे सामने है, अब जो भी तुम कहना चाहती हो इस से कह दो,’’ शेखर को साथ देख कर सीमा समझ गई कि अब रुपए तो मुझे मिलने से रहे तो क्यों न जातेजाते पिहुल के अंदर जहर का बीज बो जाऊं, जिस से शिखा ताउम्र परेशान रहे.

सीमा पिहुल को बहकाने की अनर्गल कोशिश करती रही, मगर पिहुल की तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था. वह तो इधरउधर खेलने में मस्त थी. शिखा और शेखर ये सब देख कर मुसकरा रहे थे.

उधर सीमा को भी एहसास हो गया कि इतनी छोटी बच्ची को नहीं बरगलाया जा सकता. अत: चुपचाप चली गई.

सीमा नाम का बुरा साया हमेशा के लिए उन की जिंदगी से जा चुका था और उन्हें अब कोख का मुआवजा भरने से हमेशा के लिए मुक्ति मिल गई थी. पास ही खेल रही पिहुल को देख कर दोनों मुसकराने लगे

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कहानी

कहानी : डाकू की बेटी राजकुमारी

राज्य की जनता भी राजा के गम से दुखी थी। राजा तो शिकार करके या जनता की सेवा करके  अपना समय गुजार लेते थे और इससे उनका मन लगा रहता था लेकिन रानी तो पूरा दिन  खाली रहने के कारण सिर्फ अपनी संतान न होने के…

राजा को शिकार का बहुत शौक था। एक दिन वो शिकार करने जंगल की तरफ चल दिए। उसके  सिपाही भी उसके साथ थे। जंगल में राजा के सिपाही पीछे छूट गए और वो आगे निकल गया।  वो आगे पहुंचा तभी उसने किसी बच्चे की रोने…

राजा ने बच्चे को देखा तो वो एक सुंदर कन्या थी। राजा ने उसे गोद में उठाया। उसको लेकर  वो अपने राज्य की तरफ वापस चलने लगा। अब उसके सैनिक भी उसके साथ थे।

महल में पहुंचकर राजा ने कन्या को अपनी रानी को दिया और उन्हें सारी बात बताई। रानी ने  उसे भगवान का उपहार बताया जिससे उनकी खाली झोली भर गई थी। रानी ने कन्या का नाम  ‘भागवती’ रखा।

समय बीतता गया। राजा ने भागवती को राजकुमारों की तरह रखा। उसे कभी भी ये अहसास  नहीं होने दिया कि वो लड़की है। समय के साथ भागवती शिक्षा में ही नहीं, बल्कि अस्त्र-शस्त्र  चलाने में भी निपुण हो गई थी।

अब भागवती जवान हो गई थी और राजा राजसिंह के साथ राजपाट चलाने में उनकी पूरी मदद  करती थी। वह भी राजा राजसिंह की तरह राज्य की प्रजा की चहेती थी। वह प्रजा के हर दु:ख  को अपना दु:ख और उनकी खुशी को अपनी…

राज्य में चारों तरफ खुशहाली थी लेकिन ये खुशहाली ज्यादा दिन नहीं चली। कुछ समय से  ताजपुर राज्य में आरा डाकू का आतंक छा गया। वह डाकू बहुत चालाक था। हमेशा वह लूट  और कत्ल को अंजाम देता और गायब हो जाता…

उसी समय भागवती बोली- ‘पिता महाराज, यदि आप आज्ञा दें तो मैं इस आरा डाकू को पकड़ने  की कोशिश करूं?’

राजा बोले- ‘भागवती, सारी सेना और सेनापति सहित हम भी कोशिश करके हार गए लेकिन  यदि तुम भी कोशिश करना चाहती हो तो जैसी तुम्हारी इच्छा, लेकिन सावधान रहना वो बहुत  खूंखार है।’

भागवती ने उन्हें धन्यवाद कहा और उनकी आज्ञा लेकर वह दरबार से बाहर निकल गई।

उस रात भागवती ने एक मर्द का भेष बनाया और राज्य में घूमने लगी। वह हर जगह घूम रही  थी। बाजार, गलियों, खेतों में लगातार घुमते हुए उसे 5 दिन बीत गए लेकिन वो आरा डाकू का  पता नहीं लगा पाई किंतु वह कत्ल और…

भागवती ने आरा डाकू के बारे में और जानकारी जुटाई और उन घरों के लोगों से मिली, जहां  पर डाकू ने कत्ल और लूटपाट की थी। उसको आरा डाकू के बारे में पता लगा कि वह जवान  लड़कियों का कत्ल नहीं करता था और जाने…

अगले दिन उसने राज्य में घोषणा करवाई कि राजा राजसिंह के जंगल वाले पुराने महल में सब  राज्य की लड़कियां इकट्ठी होकर गौरी की पूजा करेंगी जिससे कि उन्हें मनचाहा वर मिल सके।  इसमें कोई भी मर्द शामिल नहीं…

तय अनुसार भागवती कुछ बहादुर लड़कियों को साथ लेकर जंगल के महल में पहुंची और डाकू  का इंतजार करने लगी। उसे पूरा विश्वास था कि डाकू इस घोषणा को सुनकर यहां जरूर  आएगा।

भागवती को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा। उसने देखा कि एक साया दीवार फांदकर अंदर  दाखिल हो गया था। राजकुमारी भागवती सतर्क थी। उसने तलवार के बल पर उसे अपने काबू  में कर लिया। उसे पकड़कर दरबार में पेश किया…

अब राजकुमारी भागवती ने आरा डाकू से लूटपाट और लड़कियों का कत्ल न करने का कारण  पूछा तो उसने बताया कि वो जन्म से डाकू नहीं था। कुछ डाकू उसकी नवजात बेटी को उठाकर  ले गए और उसे मार दिया और इसी गुस्से में…

अब चौंकने की बारी राजा राजसिंह की थी। 

उसने पुछा- ‘आरा डाकू, क्या तुम्हारी बेटी 18 साल पहले मारी गई थी?’

आरा ने आश्चर्य से ‘हां’ में जवाब दिया।

राजा बोला- ‘आरा, तुम्हारी बेटी जिंदा है और जिसने तुम्हें पकड़ा है, वह राजकुमारी भागवती ही  तुम्हारी बेटी है।

राजा ने उसे सारी बात बताई कि किस तरह उसने उस छोटी लड़की को बचाया था।

अब आरा डाकू के चेहरे पर मिश्रित भाव थे। उधर राजकुमारी भागवती आश्चर्यचकित थी कि  पिता महाराज ने उसे आज तक इस बात का अहसास नहीं होने दिया था कि वो उनकी बेटी  नहीं है। भागवती भागकर राजा के गले लग गई।

राजा राजसिंह बोला- ‘आरा, हम भागवती को तो तुम्हें देंगे नहीं और आज से तुम ये गलत  काम छोड़ दो और अपने किए का पश्चाताप करो।

आरा ने कहा- ‘जब मेरी बेटी जिंदा है तो मैं ये काम छोड़ता हूं और मैं यही सोचकर खुश हूं कि  वो अब राजकुमारी है।’

आरा डाकू अब संन्यासी बन गया था और राजा राजसिंह ने उसे अपने महल के मंदिर की  देखभाल का जिम्मा दे दिया था।

पूरी प्रजा और सारे दरबारियों ने भागवती के साहस और बुद्धि की प्रशंसा की।

कहानी : डाकू की बेटी राजकुमारी

राज्य की जनता भी राजा के गम से दुखी थी। राजा तो शिकार करके या जनता की सेवा करके  अपना समय गुजार लेते थे और इससे उनका मन लगा रहता था लेकिन रानी तो पूरा दिन  खाली रहने के कारण सिर्फ अपनी संतान न होने के…

राजा को शिकार का बहुत शौक था। एक दिन वो शिकार करने जंगल की तरफ चल दिए। उसके  सिपाही भी उसके साथ थे। जंगल में राजा के सिपाही पीछे छूट गए और वो आगे निकल गया।  वो आगे पहुंचा तभी उसने किसी बच्चे की रोने…

राजा ने बच्चे को देखा तो वो एक सुंदर कन्या थी। राजा ने उसे गोद में उठाया। उसको लेकर  वो अपने राज्य की तरफ वापस चलने लगा। अब उसके सैनिक भी उसके साथ थे।

महल में पहुंचकर राजा ने कन्या को अपनी रानी को दिया और उन्हें सारी बात बताई। रानी ने  उसे भगवान का उपहार बताया जिससे उनकी खाली झोली भर गई थी। रानी ने कन्या का नाम  ‘भागवती’ रखा।

समय बीतता गया। राजा ने भागवती को राजकुमारों की तरह रखा। उसे कभी भी ये अहसास  नहीं होने दिया कि वो लड़की है। समय के साथ भागवती शिक्षा में ही नहीं, बल्कि अस्त्र-शस्त्र  चलाने में भी निपुण हो गई थी।

अब भागवती जवान हो गई थी और राजा राजसिंह के साथ राजपाट चलाने में उनकी पूरी मदद  करती थी। वह भी राजा राजसिंह की तरह राज्य की प्रजा की चहेती थी। वह प्रजा के हर दु:ख  को अपना दु:ख और उनकी खुशी को अपनी…

राज्य में चारों तरफ खुशहाली थी लेकिन ये खुशहाली ज्यादा दिन नहीं चली। कुछ समय से  ताजपुर राज्य में आरा डाकू का आतंक छा गया। वह डाकू बहुत चालाक था। हमेशा वह लूट  और कत्ल को अंजाम देता और गायब हो जाता…

उसी समय भागवती बोली- ‘पिता महाराज, यदि आप आज्ञा दें तो मैं इस आरा डाकू को पकड़ने  की कोशिश करूं?’

राजा बोले– ‘भागवती, सारी सेना और सेनापति सहित हम भी कोशिश करके हार गए लेकिन  यदि तुम भी कोशिश करना चाहती हो तो जैसी तुम्हारी इच्छा, लेकिन सावधान रहना वो बहुत  खूंखार है।’

भागवती ने उन्हें धन्यवाद कहा और उनकी आज्ञा लेकर वह दरबार से बाहर निकल गई।

उस रात भागवती ने एक मर्द का भेष बनाया और राज्य में घूमने लगी। वह हर जगह घूम रही  थी। बाजार, गलियों, खेतों में लगातार घुमते हुए उसे 5 दिन बीत गए लेकिन वो आरा डाकू का  पता नहीं लगा पाई किंतु वह कत्ल और…

भागवती ने आरा डाकू के बारे में और जानकारी जुटाई और उन घरों के लोगों से मिली, जहां  पर डाकू ने कत्ल और लूटपाट की थी। उसको आरा डाकू के बारे में पता लगा कि वह जवान  लड़कियों का कत्ल नहीं करता था और जाने…

अगले दिन उसने राज्य में घोषणा करवाई कि राजा राजसिंह के जंगल वाले पुराने महल में सब  राज्य की लड़कियां इकट्ठी होकर गौरी की पूजा करेंगी जिससे कि उन्हें मनचाहा वर मिल सके।  इसमें कोई भी मर्द शामिल नहीं…

तय अनुसार भागवती कुछ बहादुर लड़कियों को साथ लेकर जंगल के महल में पहुंची और डाकू  का इंतजार करने लगी। उसे पूरा विश्वास था कि डाकू इस घोषणा को सुनकर यहां जरूर  आएगा।

भागवती को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा। उसने देखा कि एक साया दीवार फांदकर अंदर  दाखिल हो गया था। राजकुमारी भागवती सतर्क थी। उसने तलवार के बल पर उसे अपने काबू  में कर लिया। उसे पकड़कर दरबार में पेश किया…

अब राजकुमारी भागवती ने आरा डाकू से लूटपाट और लड़कियों का कत्ल न करने का कारण  पूछा तो उसने बताया कि वो जन्म से डाकू नहीं था। कुछ डाकू उसकी नवजात बेटी को उठाकर  ले गए और उसे मार दिया और इसी गुस्से में…

अब चौंकने की बारी राजा राजसिंह की थी।

उसने पुछा- ‘आरा डाकू, क्या तुम्हारी बेटी 18 साल पहले मारी गई थी?’

आरा ने आश्चर्य से ‘हां’ में जवाब दिया।

राजा बोला- ‘आरा, तुम्हारी बेटी जिंदा है और जिसने तुम्हें पकड़ा है, वह राजकुमारी भागवती ही  तुम्हारी बेटी है।

राजा ने उसे सारी बात बताई कि किस तरह उसने उस छोटी लड़की को बचाया था।

अब आरा डाकू के चेहरे पर मिश्रित भाव थे। उधर राजकुमारी भागवती आश्चर्यचकित थी कि  पिता महाराज ने उसे आज तक इस बात का अहसास नहीं होने दिया था कि वो उनकी बेटी  नहीं है। भागवती भागकर राजा के गले लग गई।

राजा राजसिंह बोला- ‘आरा, हम भागवती को तो तुम्हें देंगे नहीं और आज से तुम ये गलत  काम छोड़ दो और अपने किए का पश्चाताप करो।

आरा ने कहा- ‘जब मेरी बेटी जिंदा है तो मैं ये काम छोड़ता हूं और मैं यही सोचकर खुश हूं कि  वो अब राजकुमारी है।’

आरा डाकू अब संन्यासी बन गया था और राजा राजसिंह ने उसे अपने महल के मंदिर की  देखभाल का जिम्मा दे दिया था।

पूरी प्रजा और सारे दरबारियों ने भागवती के साहस और बुद्धि की प्रशंसा की।

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कहानी

गर्ल टौक

एक दिन साहिल के सैलफोन की घंटी बजने पर जब आंचल ने उस के स्क्रीन पर रोहिणी का नाम देखा तो उस के माथे पर त्योरियां चढ़ गईं

रोहिणीके महफिल में कदम रखते ही संगीसाथी जो अपने दोस्त साहिल की शादी में नाच रहे थे, के कदम वहीं के वहीं रुक गए. सभी रोहिणी के बदले रूप को देखने लगे

‘‘रोहिणी… तू ही है न?’’ मोहन की आंखों के साथसाथ उस का मुंह भी खुला का खुला रह गया

वरमाला होने को थी, दूल्हादुलहन स्टेज पर आ चुके थे. दोस्त स्टेज के सामने मस्ती से नाच रहे थे. तभी रोहिणी के आते ही सारी महफिल का ध्यान उस की तरफ खिंच गया. यह तो होना ही था. वह लड़की जो कभी लड़कों का पर्यायवाची समझी जाती थी, आज बला की खूबसूरत लग रही थी. गोल्डन बौर्डर की हलकीपीली साड़ी पहने, खुले घुंघराले केशों और सुंदर गहनों से लदीफंदी रोहिणी आज परियों को भी मात दे रही थी. रोहिणी को इस रूप में कालेज के किसी भी दोस्त ने आज तक नहीं देखा था

‘‘अरे यार, पहले पूछ ले कहीं कोई और न हो,’’ मनीष ने मोहन के साथ मिल कर ठिठोली की.

‘‘पूछने की कोई जरूरत नहीं. हूं मैं ही. मैं ने सोचा कि आज साहिल को दिखा दूं कि उस ने क्या खोया है,’’ रोहिणी स्टेज पर चढ़ते हुए बोली

‘‘पर अब तो लेट हो गई. अब क्या फायदा जब साहिल दूल्हा बन चुका,’’ मोहन के कहते ही सब हंसने लगे

हंसीखिंचाई के इस माहौल में आंचल गंभीर थी. दुलहन बनी बैठे होने के कारण वह कुछ कह नहीं सकती थी और फिर साहिल को जानती भी कहां थी वह. यह रिश्ता मातापिता ने ढूंढ़ा था. मेरठ के पास एक छोटे से कसबे की लड़की को दिल्ली में रहने वाला अच्छा वर मिला तो सभी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा था. आननफानन उस की शादी तय कर दी गई थी. लेकिन आज ये सब बातें सुन कर उस का दिल बैठा जा रहा था कि कहीं गलती तो नहीं कर बैठी वह… यह लड़की खुलेआम सब के सामने क्या कुछ कह रही है और सब हंस रहे हैं. साहिल भी कुछ नहीं कह रहे. ऐसी बातें क्या लड़कियों को शोभा देती हैं? साड़ी पहन लेने से संस्कार नहीं आ जाते. इन्हीं सब विचारों में उलझती आंचल ने धीरे से आंखें उठा कर साहिल की ओर देखा

‘‘अरे यार रोहिणी, अभी तो मेरी शादी भी नहीं हुई है, अभी से लड़ाई करवाएगी क्या?’’ आंचल की आंखों के भाव शायद साहिल को समझ आ गए थे

शादी कर के आंचल दिल्ली आ गई. कुछ दिन उसे नई गृहस्थी में बसाने हेतु उस की सास साथ रहीं. ससुरजी की नौकरी जामनगर में थी, इसलिए घरगृहस्थी बस जाने पर सास को वहीं लौटना था. कुछ ही दिनों में आंचल तथा उस की सास में मधुर रिश्ता बन गया. वह बहुत खुश थी. दिल्ली में अच्छा मकान, सारी सुखसुविधाएं, साजसज्जा, सास से मधुर संबंध, पति के प्यार में पूरी तरह सराबोर. उस ने कभी सोचा भी न था कि उस की शादीशुदा जिंदगी की इतनी खुशहाल शुरुआत होगी. अपने मायके फोन कर के वह यहां की तारीफों के पुल बांधती रहती. खाना बनाना, घर को सलीके से रखना, पहननेओढ़ने की तहजीब व बातचीत में माधुर्य, इन सभी गुणों से उस ने भी अपनी सास तथा साहिल का मन जल्द ही मोह लिया

‘‘मम्मी फिर, जल्दी आना, ’’ सास के पांव छूते हुए उस ने कहा

‘‘आंचल, मैं मम्मी को स्टेशन छोड़ कर आता हूं,’’ कहते हुए साहिल व उस की मां कार में सवार हो निकल गए

आज पहली बार आंचल घर पर अकेली थी. वह गुनगुनाती हुई अपने घर को संवारने लगी. तभी फोन की घंटी बजी तो उस ने ध्यान दिया कि साहिल अपना सैलफोन घर पर ही भूल गए हैं. साहिल के फोन की स्क्रीन पर रोहिणी का नाम पढ़ वह सोचने लगी कि यह तो उसी लड़की का नाम है फोन उठाऊं या नहीं? माथे पर त्योरियां चढ़ गईं. फिर आंचल ने फोन उठा लिया, किंतु हैलो नहीं कहा. वह सुनना चाहती थी कि रोहिणी कैसे पुकारती है साहिल को

‘‘हैलो डियर, व्हाट्स अप?’’ रोहिणी की आवाज में गर्मजोशी थी, ‘‘खो ही गए तुम तो शादी के बाद.’’

‘‘साहिल तो घर पर नहीं हैं,’’ आंचल ने रूखा सा जवाब दिया

‘‘ओह, तुम आंचल हो न? तुम मुझे नहीं पहचान पाओगी, सिर्फ शादी में मुलाकात हुई थी और शादी में इतने नए चेहरे मिलते हैं कि याद रखना मुमकिन नहीं,’’ रोहिणी की आवाज में अभी भी गर्मजोशी थी

आंचल ने रोहिणी की बातों का कोई उत्तर न दिया, ‘‘कोई काम था आप को मेरे पति से?’’

मेरे पति से के संबोधन पर रोहिणी हंस पड़ी, ‘‘नहीं, साहिल से नहीं, आंटी से बात करनी थी’’

‘‘वे जामनगर जा चुकी हैं. क्या बात करनी थी, मुझे बता दीजिए,’’ आंचल का स्वर अब भी रूखा था

‘‘कुछ खास काम नहीं, बस ऐसे ही…’’ कह रोहिणी चुप हो गई. आंचल का बात करने का ढंग उसे अटपटा लगा. लग रहा था मानो वह रोहिणी से बात करना नहीं चाह रही

‘‘ठीक है,’’ कह आंचल ने फोन काट दिया. उस का मन उदास हो गया. साहिल तो दोस्त हैं पर यह लड़की तो उस की सास से भी बातचीत करती है. क्या पता कब से करती हो. उस के शहर में लड़के और लड़की के बीच इस तरह की दोस्ती के बारे में सोच भी नहीं सकते थे. और अब जबकि उन की शादी हो चुकी है तब क्या मतलब है इस दोस्ती का?

साहिल के लौट आने पर आंचल ने उसे रोहिणी के फोन के बारे में कुछ नहीं बताया. सोचा जब कोई जरूरी काम या बात नहीं है तो क्या बताना

आंचल को उदास देख साहिल ने मजाक किया, ‘‘क्या बात है, अभी से सास की याद सताने लगी?’’

फीकी सी हंसी से आंचल ने बात टाल दी कि कैसे पूछे साहिल से कुछ? रात भर अजीबअजीब विचार आते रहे, कुछ खुली आंखों से तो कुछ सपने बन कर. कैसे हल करे आंचल अपने मन की उलझन. न तो मायके में और न ही ससुराल में वह यह बात किसी से कर सकती थी

जीवन यथावत चलने लगा. साहिल सुबह से देर शाम तक औफिस में रहता और आंचल घर में मगन रहती. उसे इसी जिंदगी का इंतजार था. अब अपनी मनपसंद जिंदगी पा कर वह बहुत खुश थी. एक शाम घर लौट कर साहिल ने कहा, ‘‘आंचल, मैं रोहिणी को खाने पर बुलाना चाहता हूं, मैं चाहता हूं उसे तुम्हारे हाथों का लजीज खाना खिलाऊं. इस रविवार को बुलाया है मैं ने उसे.क्याक्या बनाओगी?’’

‘‘आप ने मुझे बता दिया है तो कुछ अच्छा ही बनाऊंगी. आप फिक्र मत कीजिए,’’ आंचल ने साहिल को तो आश्वस्त कर दिया, किंतु स्वयं चिंताग्रस्त हो गई

रविवार को रोहिणी का रूप उस की शादी के दिन से बिलकुल विपरीत था. जींसटौप, कसे केश… आज रोहिणी के नैननक्श पर गौर किया था आंचल ने. वह वाकई खूबसूरत थी. साहिल के दरवाजा खोलते ही रोहिणी उस के गले लगी. यह कैसी दोस्ती है भला. आंचल को यह बात एकदम नागवार गुजरी. अचानक वह जा कर साहिल की बांह में बांह डाल खड़ी हो गई. लेकिन उस की इस हरकत से साहिल अचकचा गया. धीरे से बोला, ‘‘अ… चायनाश्ता ले आओ’’

‘हुंह, दोस्त गले लग सकती है, लेकिन बीवी बांह में बांह नहीं डाल सकती,’ मन ही मन बड़बड़ाती आंचल किचन में चली गई

बेहद फुरती के साथ उस ने सारा खाना डाइनिंग टेबल पर सजा दिया. वह साहिल और रोहिणी को कम से कम समय एकसाथ अकेले में गुजारने देना चाहती थी. वे दोनों सोफे पर आमनेसामने बैठे थे

साहिल के पीछे से आ कर आंचल ने इस बार साहिल के गले में अपनी बांहें डालते हुए कहा, ‘‘चलिए, खाना तैयार है.’’साहिल फिर अचकचा गया. आंचल का अचानक ऐसा व्यवहार… वह तो हमेशा छुईमुई सी, शरमाई सी रहती थी और आज रोहिणी के सामने उसे क्या हो गया है.

खाना खाते हुए रोहिणी ने आंचल के खाने की तारीफ की

‘‘थैंक्यू. मैं तो रोज ही इन के लिए अच्छे से अच्छा खाना पकाती हूं. बहुत प्यार करती हूं इन से और अगर किसी ने इन के और मेरे बीच आने की सोची भी तो मैं… मैं उसे…’’

‘‘अरे, यह क्या बोल रही हो?’’ साहिल ने आंचल की बात बीच में ही काटते हुए कहा, ‘‘रोहिणी क्या कह रही है और तुम क्या समझ रही हो?’’

‘‘मैं ने ऐसा क्या कह दिया कि आप मुझे इस तरह…’’

आंचल अपनी बात पूरी कर पाती उस से पहले ही रोहिणी ने बीचबचाव करते हुए कहा, ‘‘क्या साहिल, तुम भी न… ये कोई तरीका है नईनवेली दुलहन से बात करने का. एक तो उस ने इतना लजीज खाना बनाया है और तुम…’’

आंचल ने बीच में बात काटते हुए कहा, ‘‘इन्होंने जो कुछ कहा वह अपनी पत्नी से कहा और इन्हें पूरा हक है. आप बीच में न ही पड़ें,’’ फिर धीरे से बड़बड़ाई, ‘‘अच्छी तरह समझती हूं मैं, पहले आग लगाओ फिर बुझाने का नाटक’’

रोहिणी चुप हो गई. वह समझ नहीं पा रही थी कि आंचल उस से इस तरह बेरुखी से व्यवहार क्यों कर रही है. वह तो उन के घर साहिल के साथसाथ आंचल से भी दोस्ती करने आई थी

‘‘अरे, मूड क्यों खराब करती हो, आंचल, जाओ, खाना तो हो गया अब कुछ मीठा नहीं खिलाओगी रोहिणी को?’’ साहिल ने एक बार फिर माहौल को खुशगवार बनाने का प्रयास किया. किंतु आंचल और रोहिणी दोनों ही उदास थीं. आंचल मुंह बिचकाए अंदर चली गई रोहिणी हाथ धोने के बहाने वहां से उठ कर बाथरूम में चली गई. वहां एकांत में वह सोचने लगी कि आखिर ऐसी क्या बात हो सकती है जो आंचल को इतनी बुरी लगी. हर नईनवेली को कुछ समय लगता है नए वातावरण, नए लोगों से तालमेल बैठाने में. हर लड़की अलग ढंग से पलीबढ़ी होती है. नए परिवार के नए रंगढंग में रचनेबसने में थोड़ा समय तो लगेगा ही न आखिर आंचल को नए घर में आए दिन ही कितने हुए हैं. अभीअभी उस ने गृहस्थी संभाली है और खुद न्योतों पर जाने की जगह वही दूसरों को भोज करा रही है

अचानक उस के मन में खयाल आया कि आंचल कहीं मेरे और साहिल के संबंध पर शक तो नहीं कर रही? आखिर वह एक ऐसे वातावरण से आई है जहां लड़कों और लड़कियों के बीच बराबरी की दोस्ती देखने को नहीं मिलती. ऐसे में रोहिणी का खुला व्यवहार कहीं आंचल को अटपटा तो नहीं लग रहा?

मीठे में आंचल ने खीर परोसी. आंचल का उतरा मुंह ठीक करने के लिए रोहिणी ने एक और कोशिश की, ‘‘वाह, कितनी स्वादिष्ठ खीर बनाई है. आंचल, प्लीज मुझे भी सिखाओ न ऐसा खाना बनाना’’

‘‘क्यों? मैं क्यों सिखाऊं ताकि आप रोजरोज मेरी गृहस्थी में दाखिल होती रहें?’’

आंचल का यह जवाब साहिल को बिलकुल पसंद नहीं आया और उस ने आंचल को डपट दिया, ‘‘आंचल, यह क्या तरीका है घर आए मेहमान से बात करने का?’’

साहिल की आवाज में कड़ाई सुन आंचल की आंखें डबडबा गईं. कुछ शक की चुभन, कुछ क्रोध की छटपटाहट… वह स्वयं को रोक न पाई और आंसू पोंछती हुई अंदर चली गई

‘‘पता नहीं आज क्या हो गया है इसे, कैसा अजीब बरताव कर रही है,’’ साहिल आंचल की प्रतिक्रिया पर अभी भी हैरान था. लेकिन आंचल की आंखों के भावों व बेरुखी से रोहिणी की कुछकुछ समझ आ रहा था

‘‘यदि तुम बुरा न मानो तो मैं आंचल से बात कर सकती हूं क्या?’’ रोहिणी ने साहिल से अनुमति मांगी

‘‘अ… मैं तो बुरा नहीं मानूंगा पर अगर आंचल ने तुम्हारे साथ कोई बदतमीजी कर दी तो? इसे इस मूड में मैं ने पहले कभी नहीं देखा’’

‘‘तो मैं भी बुरा नहीं मानूंगी’’

कमरे में आंचल बिस्तर पर औंधी पड़ी सुबक रही थी. रोहिणी के उस का नाम पुकारने पर वह व्यवस्थित होने लगी

‘‘तबीयत ठीक नहीं थी तो कह देतीं न,

मैं फिर कभी आ जाती,’’ रोहिणी ने बिलकुल साधारण ढंग से बात शुरू की, ‘‘मैं यहां साहिल से मिलने या खाना खाने नहीं आई थी, बल्कि मैं तो आप से मिलने, आप से गपशप करने आई थी’’

किंतु आंचल अब भी मुंह फुलाए बैठी थी. रोहिणी की ओर देखना भी उसे गवारा न था

‘‘देखो न, आप मेरी भाभी जैसी हो. आप को मस्का नहीं मारूंगी तो आप मेरे लिए एक अच्छा सा लड़का कैसे ढूंढ़ोगी भला?’’ कह रोहिणी हंसने लगी, ‘‘साहिल से कोई उम्मीद रखना बेकार है. उसे तो मैं कहकह कर थक गई. वैसे उस की भी गलती नहीं है. उस की दोस्ती तो जैसा वह है वैसे लड़कों से है पर मुझे साहिल जैसा शांत, शरमीला लड़का नहीं चाहिए. मुझे तो अपने जैसा बिंदास और मस्त लड़का चाहिए. अगर है कोई आप की नजर में तो बताओ न’’

रोहिणी का यह पैतरा काम कर गया आंचल थोड़ी संभली हुई दिखने लगी, रोहिणी की बातों से उसे कुछ आश्वासन मिल रहा था

तभी साहिल भी झांकता हुआ कमरे में दाखिल हुआ, ‘‘क्या चल रहा है भई?’’

‘‘कुछ नहीं, तुम्हारे मतलब का कुछ नहीं है यहां पर. यहां गर्ल टौक चल रही है और वह भी बेहद इंट्रैस्टिंग. इसलिए प्लीज, बाहर जाते हुए दरवाजा बंद करते जाना,’’ कह रोहिणी तो हंसी ही, साथ ही आंचल की भी हंसी छूट गई

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