बीकानेर, 5 जुलाई 2017। खरतरगच्छाधिपति जैनाचार्यश्री जिनमणि प्रभ सागर सूरिश्वरजी के शिष्य मनित प्रभ सागर दस्साणी चौक के पास की धनराज ढढ्ढा की कोटड़ी में ने बुधवार को प्रवचन में कहा कि चातुर्मास काल साधना, आराधना व भक्ति के लिए है। चातुर्मास का सदुपयोग करें तथा आत्मा को परमात्म तत्व की प्राप्ति में लगावें।
मुनिश्री ने कहा कि चातुर्मास में प्रत्येक क्रिया विवेकपूर्ण होनी चाहिए। विवेक के बिना धम नहीं है। चातुर्मास के समय में पुरुषार्थ से पुण्यों का उदय तथा पापों व कषायों का क्षय करें। मोक्ष प्राप्ति का लक्ष्य रखकर चार माह में साधु सी साधना करें। आहार, व्यवहार व विचारों को शुद्ध रखे तथा जैन धर्म के नियमों व सिद्धान्तों की पूर्ण पालना करें।
उन्होंने कहा कि चातुर्मास पर्व के दौरान देह को नहीं आत्मा को सजाएं। धर्म, आध्यात्म व त्याग के मार्ग को अपनाते हुए आंतरिक चेतना को जगाएं। अधिकाधिक तपस्याएं करें रात्रि भोजन का त्याग करें। पानी को उबाल कर ठंडा कर उपयोग में लें। पानी और समय का सदुपयोग करें, पानी की एक बूंद का भी दुरुपयोग नहीं करें। बीता हुआ समय वापस नहीं आता है।
– मोहन थानवी
चातुर्मास काल : साधना, आराधना व भक्ति के लिए
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