25 अक्टूबर 2025 को भारत के करोड़ों लोग सुबह की पहली किरण से पहले ही नदियों के किनारे जमा हो जाएंगे — नहाने के लिए, खाने के लिए, और भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए। चहथ पूजा 2025 का पहला दिन, नहाय खाय, इस चार दिवसीय त्योहार की शुरुआत है, जो सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है। नई दिल्ली के लिए सूर्योदय 06:28 बजे और सूर्यास्त 17:42 बजे है, और यही दिन शुद्धि की शुरुआत है — शरीर की नहाने के साथ-साथ मन की भी।
नहाय खाय: शुद्धि की शुरुआत, जिसमें खाने का भी नियम है
नहाय खाय का मतलब बस नहाना नहीं है। यह एक पूरी प्रक्रिया है: नदी या तालाब में नहाकर, घर को साफ करके, और एक सात्विक भोजन खाकर — लौकी, चना दाल और चावल। ये तीन चीजें अक्सर लोग भूल जाते हैं, लेकिन इनका चयन बहुत गहरा है। लौकी शरीर को शीतल रखती है, चना दाल ऊर्जा देती है, और चावल अनाज के प्रति सम्मान दर्शाता है। यहां कोई मिठाई नहीं, कोई तला हुआ नहीं। यह त्योहार भूख को नहीं, बल्कि आकांक्षाओं को शांत करने का तरीका है।
खर्ना: 36 घंटे का निर्जला व्रत, जिसमें भूख नहीं, इच्छाएं भूखी रहती हैं
अगले दिन, 26 अक्टूबर, जब दुनिया खाने की तैयारी कर रही होगी, तो भक्त बिना पानी के भूखे रहेंगे। यह खर्ना है — एक ऐसा व्रत जिसमें भूख के साथ-साथ आवाज़, गुस्सा, और लालच को भी रोकना होता है। सूर्यास्त के बाद जो खाना खाया जाता है — गुड़ का खीर और रोटी — वह पहले भगवान को अर्पित होता है। यह खीर केवल मिठाई नहीं, यह एक संकेत है कि जीवन का सबसे छोटा उपहार भी, भक्ति से दिया जाए तो अमूल्य हो जाता है।
सांध्य अर्घ्य: सूर्यास्त के साथ अपनी आत्मा का समर्पण
27 अक्टूबर को सूर्यास्त के समय, लाखों भक्त पानी में खड़े हो जाते हैं — पैर ठंडे, हाथ में सूप (बांस का छलनी) लिए, जिसमें ठेकुआ, गन्ना और फल होते हैं। यह दृश्य दुनिया के किसी भी त्योहार से अलग है। कोई ढोल नहीं, कोई नाच नहीं, बस चुपचाप धूप के अंत तक खड़े रहना। सांध्य अर्घ्य सिर्फ पूजा नहीं, यह एक अंतर्दृष्टि है: जीवन की अस्थिरता को स्वीकार करना, आभार दिखाना, और जो चला गया, उसे छोड़ देना। यही कारण है कि यह त्योहार इतना शांतिपूर्ण लगता है।
उषा अर्घ्य: सुबह की पहली किरण, और नई शुरुआत का संकल्प
28 अक्टूबर की सुबह, जब दुनिया अभी सो रही होगी, तो भक्त फिर से नदी के किनारे खड़े होंगे। यही उषा अर्घ्य है — सूर्योदय के साथ अर्घ्य देना। यहां भी वही सूप, वही ठेकुआ, वही गन्ना। लेकिन भावना बदल गई है। अब यह समर्पण नहीं, आशा है। एक नई दिन की शुरुआत, एक नया संकल्प। राधाकृष्ण मंदिर के अनुसार, यही त्योहार का सबसे बड़ा संदेश है: "भक्ति रचना से बड़ी होती है।" एक छोटा सा फल, अगर दिल से दिया जाए, तो लाखों रुपये की पूजा से ज्यादा मूल्यवान हो जाता है।
चहथ पूजा क्यों है इतनी पारिस्थितिक रूप से शुद्ध?
इस त्योहार का सबसे बड़ा अद्भुत पहलू यह है कि इसमें कोई प्लास्टिक नहीं, कोई रंग नहीं, कोई धुआं नहीं। सारा अर्घ्य बांस के सूप में रखा जाता है — जो एक कृषि उपकरण था, अब एक पवित्र वस्तु बन गया है। यह भारत की खेती की जड़ों को जोड़ता है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे भारत का "सबसे पवित्र और पारिस्थितिक रूप से शुद्ध त्योहार" बताया है। अमेरिका के भारतीय उपनिवेश भी इसी शुद्धता को बरकरार रखते हैं — जहां नदी नहीं होती, वहां झील, या यहां तक कि बर्फ पिघलाकर भी अर्घ्य दिया जाता है।
भारत से लेकर अमेरिका तक: एक त्योहार, एक ही भावना
चहथ पूजा केवल बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश का त्योहार नहीं है। यह अब एक वैश्विक आंदोलन बन चुका है। न्यूयॉर्क, टोरंटो, लंदन, और सिंगापुर में भारतीय समुदाय अपने घरों के पास के तालाब या नहरों के किनारे इकट्ठा होते हैं। यहां कोई देवी-देवता नहीं, लेकिन एक ही भावना है — धूप के प्रति आभार। एक अमेरिकी भारतीय ने कहा, "हम यहां नदी नहीं देखते, लेकिन हम उस नदी को दिल में लाते हैं जो हमारे गांव में थी।"
चहथ पूजा का आध्यात्मिक सार: बाहरी अनुष्ठान नहीं, आंतरिक शुद्धि
क्या आप जानते हैं कि चहथ पूजा का सबसे बड़ा रहस्य क्या है? यह नहीं कि आप कितनी बार अर्घ्य देते हैं, बल्कि यह कि आप अपने अंदर कितना शांत हो जाते हैं। राधाकृष्ण मंदिर के अनुसार, "नहाय खाय का सार है — भगवान के प्रति चेतना और वैराग्य से मन को शुद्ध करना।" यह त्योहार किसी देवता को खुश करने के लिए नहीं, बल्कि अपने आप को बदलने के लिए है। जब आप बिना पानी के 36 घंटे बिताते हैं, तो आप सिर्फ भूखे नहीं रहते — आप अपनी इच्छाओं को भी रोकते हैं। यही वास्तविक तपस्या है।
चहथ पूजा के लिए शुभ मुहूर्त (2025)
- नहाय खाय: 25 अक्टूबर, 2025 — चतुर्थी तिथि, शुक्ल पक्ष, कार्तिक माह
- खर्ना: 26 अक्टूबर, 2025 — निर्जला व्रत (पानी नहीं)
- सांध्य अर्घ्य: 27 अक्टूबर, 2025 — सूर्यास्त के बाद (17:42 बजे, दिल्ली के अनुसार)
- उषा अर्घ्य: 28 अक्टूबर, 2025 — सूर्योदय के समय (06:28 बजे, दिल्ली के अनुसार)
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
चहथ पूजा क्यों बिहार और झारखंड में इतनी ज्यादा मनाई जाती है?
चहथ पूजा का जन्म गंगा-यमुना के तटीय क्षेत्रों में हुआ, जहां कृषि और सूर्य की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। बिहार और झारखंड के लोग खेती पर निर्भर थे, और सूर्य ही फसलों के लिए जीवन देने वाला था। यही कारण है कि यहां इस त्योहार की भावना गहरी है — यह केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन का हिस्सा है।
क्या बिना नदी के चहथ पूजा कर सकते हैं?
हां, बिल्कुल। अमेरिका, यूके और दुबई जैसे देशों में भारतीय समुदाय टैंक, झील, यहां तक कि बर्फ पिघलाकर भी अर्घ्य देते हैं। मुख्य बात नदी है नहीं, बल्कि भक्ति है। जब आप जानबूझकर एक पवित्र अर्घ्य तैयार करते हैं, तो भगवान उसे उसी भाव से स्वीकार करते हैं।
चहथ पूजा के दौरान नहाना क्यों जरूरी है?
नहाना सिर्फ शारीरिक शुद्धि नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धि का प्रतीक है। यह एक रितुअल है जो बताता है कि आप अपने अतीत को धो रहे हैं — गुस्सा, ईर्ष्या, लालच। यह एक नए शुरुआत का संकल्प है। इसलिए इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं — नया शरीर, नया मन।
चहथ पूजा क्यों इतना आर्थिक रूप से भारी नहीं है?
इस त्योहार में कोई बड़ी पूजा सामग्री नहीं, कोई गुड़िया नहीं, कोई चांदी का बर्तन नहीं। सब कुछ प्राकृतिक है — बांस, फल, गन्ना, ठेकुआ। यह त्योहार धन की ताकत को नहीं, बल्कि भक्ति की शक्ति को बढ़ाता है। इसलिए यह गरीब और अमीर दोनों के लिए समान है — एक फल भी बराबर हो जाता है।
चहथ पूजा के बाद क्या करना चाहिए?
त्योहार के बाद अपने घर में आया हुआ प्रसाद खाएं, लेकिन उसकी भावना न भूलें। यह एक नियमित आदत बन जानी चाहिए — सुबह धूप की ओर देखना, नदी के किनारे जाना, या बस एक फल देवता को अर्पित करना। चहथ पूजा का सबसे बड़ा उपहार यह है कि आप जीवन की साधारण चीजों का आभार जान जाएं।
चहथ पूजा का आध्यात्मिक संदेश क्या है?
सूर्य एक देवता नहीं, एक शक्ति है — जो बिना किसी भेदभाव के सबको जीवन देती है। चहथ पूजा यह सिखाती है कि जो देता है, उसकी भक्ति से ज्यादा कुछ नहीं होता। अर्घ्य देने का मतलब नहीं है कि आप कुछ मांग रहे हैं — बल्कि आप धन्यवाद दे रहे हैं। यही असली आध्यात्मिकता है।