कहते हैं बाजार में वो ताकत हैं जिसकी दूरदर्शी आंखें हर अवसर को भुना कर मोटा मुनाफा कमाने में सक्षम हैं। महंगे प्राइवेट स्कूल, क्रिकेट, शीतल पेयजल व मॉल से लेकर फ्लैट संस्कृति तक इसी बाजार की उपज है। बाजार ने इनकी उपयोगिता व संभावनाओं को बहुत पहले पहचान लिया और नियोजित तरीके से इस क्षेत्र में आहिस्ता-आहिस्ता अपना आधिपत्य स्थापित भी कर ही लिया। कई साल पहले जब बोतल बंद पानी का दौर शुरू हुआ तो मन में सहज ही सवाल उठता… क्या जमाना आ गया है, अब बोतलों में पानी बिकने लगा है। लेकिन आज हम सफर के लिए ट्रेन पकड़ने से पहले ही बोतलबंद पानी खरीद कर बैग में रख लेते हैं। कई दशक पहले ही बाजार ने त्योहार को भी अवसर के रूप में भुनाना शुरू कर दिया। त्योहार यानी बड़ा बाजार। पहले जेबें खाली होते हुए भी त्योहार मन को असीम खुशी देते थे। त्योहार के दौरान दुनिया बदली-बदली सी नजर आती थी। लेकिन दुनियावी चिंताओं के फेर में धीरे-धीरे मन में त्योहारों के प्रति अजीब सी उदासीनता घर करने लगी।