रेखाचित्र/ – मोहन थानवी
ये रास्ते हैं जीवन के…
पुल से स्टेशन विहंगम दिखा । तीनों प्लेटफार्म मानो छू सकता था । वहां गाड़ी की
प्रतीक्षा में मौजूद हुजूम से बतिया सकता था । देखते देखते प्लेटफार्म नं एक
पर गाड़ी आन पहुंची। कोई खास हलचल नहीं । एक दो ही लोग गाड़ी में जा बैठे । ये
पैसेंजर थी। गांव जाने के लिए जरूरी और मजबूरी में ही लोग इसमें यात्रा करते
हैं । तभी तीन नं पर गाड़ी के पहुंचते पहुंचते लोग डिब्बों में घुसने लगे । पलक
झपकी न झपकी 100-200 लोग गाड़ी में बैठे दिखे । ये बड़े शहरों में जाने वाली
एक्सप्रेस है । इससे लोग बिना मकसद दिखावा करने या सिर्फ घूमने के लिए भी जाते
हैं । दो नं प्लेटफार्म लोगों के होते हुए भी शांत दिखा । वहां गाड़ी पहुंची तो
कुछ देर तक लोग डिब्बों में झांकते रहे । पसंदीदा जगह दिखी तो 10-15 लोगों ने
अपना सामान वहां जमाया फिर खुद भी बैठ गए । ये गाड़ी तीर्थयात्रा स्पेशल थी ।
इसमें जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर जीने वाले ही यात्रा करते हैं । अपना सामान
यानी विचारों का आदान प्रदान कर तीर्थ करते हैं ।
पुल से आहिस्ता आहिस्ता उतर कर नाचीज ने अपना सामान इंजन से चौथे डिब्बे में
जमा लिया ।
– मोहन थानवी