कभी-कभी हमें कोई बात सुनते ही बाचीत में "संदेह" उठ जाता है। यह कोई बड़ी बात नहीं, बस दिमाग की अलर्जी है जो हमें और जानकारी चाहने पर मजबूर करती है। सवाल उठना ठीक है, बस ध्यान रखें कि सवाल सही जगह से आएँ।
संदेह के दो मुख्य कारण होते हैं – पहला, जानकारी का अधूरा होना और दूसरा, भरोसे का टूटना। अगर स्रोत भरोसेमंद नहीं है, तो तुरंत शंका होना स्वाभाविक है। यही कारण है कि हर खबर के पीछे की जाँच करना ज़रूरी है।
जब भी कोई बात आपको अजीब लगे, तो इन तीन कदमों को फॉलो करें:
इन बुनियादी चीज़ों से आपका संदेह अक्सर साफ़ हो जाता है, और आप सही जानकारी पर भरोसा कर सकते हैं।
संदेह को नकारात्मक सोच नहीं बनना चाहिए, बल्कि इसे एक सीखने का मौका समझें। जब आप सवाल पूछते हैं, तो आप खुद को नया ज्ञान अर्जित करने की दिशा में ले जाते हैं।
उदाहरण के तौर पर, "2022 तक भारत की सीमा की सभी खाली जगहों को ढक दिया जाएगा?" जैसे सवाल में आप न केवल दी गई बात को चुनौती देते हैं, बल्कि उसके पीछे के इरादे और योजना को भी समझते हैं।
इसी तरह, "अगर मैंने हिट एंड रन किया और फिर जानकारी देने के लिए वापस आ गया, तो क्या होगा?" जैसे व्यक्तिगत अनुभव में भी आप अपनी जिम्मेदारी और परिणामों का विश्लेषण कर सकते हैं।
जब संदेह को सवाल‑जवाब में बदलते हैं, तो आप खुद को और दूसरों को सच्चाई के करीब लाते हैं। यही वह तरीका है जिससे हर संदेह को एक सकारात्मक बदलाव में बदला जा सकता है।
तो अगली बार जब भी आपका दिमाग "संदेह" कहे, तो इसे अलार्म नहीं, बल्कि गेटवे समझें – गेटवे जिससे आप बेहतर जानकारी और समझ तक पहुंच सकते हैं।
नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना भारत की सरकार के लिए एक बड़ी उम्मीद थी। उनकी दृष्टिकोण और उनका सामर्थ्य समझ कर इस कदम को लेने के मामले में भारतीय जनता को बहुत आशा है। हालांकि, मोदी सरकार की प्रथम राजनीतिक कार्यवाही के बारे में काफी संदेह रहे हैं। उनकी नेतृत्व क्षमता और सुधारों के लिए काफी सनद है, लेकिन निश्चित उपयोग के लिए यह प्रश्न है कि उन्हें प्रभावी तरीके से काम करने में आगे बढ़ना होगा।
जनवरी 27 2023