भाई−भाई में झगड़ा हो गया। इतने जोर से हो गया कि लोग तमाशा देखने लगे। बड़ी पुरानी कहावत है− जर, जमीन, जोरू और जायदाद, झगड़ा इनमें से किसी एक के कारण भी हो सकता है। इन भाइयों के पास तो ये सब के सब हैं, फिर झगड़ा होता कैसे नहीं?
यह झगड़ा बहुत बड़ा है। जर का साइज बड़ा हो, जोरू का साइज बड़ा हो, जायदाद का साइज बड़ा हो, और सबसे बड़ी बात यह कि स्वार्थ का साइज बड़ा हो तो झगड़ा होता ही है। और, भाई−भाई जब लड़ते हैं तो ऐसे लड़ते हैं कि कोई दुश्मन भी क्या लड़ेगा। भाई−भाई के झगड़े की बात चले तो कितने ही नाम याद आने लगते हैं। महाभारत के कौरव−पांडव, रामायण के बाली−सुग्रीव, मुगल काल का औरंगजेब… भाई−भाई का झगड़ा हमारी परम्परा है, देश का इतिहास है।
यह झगड़ा धंधे का झगड़ा है। धंधे का झगड़ा अकसर तीसरी पीढ़ी से शुरू होता है। पहली पीढ़ी समृद्धि की नींव रखती है। दूसरी पीढ़ी समृद्धि को बढ़ाती है और तीसरी उसके लिए आपस में लड़ती है। लेकिन, यह झगड़ा तो दूसरी पीढ़ी में ही शुरू हो गया। हिन्दुस्तान में पैसे की परम्परा तरक्की कर रही है।
कभी−कभी भाई लोग खेल−खेल में लड़ जाते हैं। कहीं यह झगड़ा भी कोई खेल तो नहीं है? अगर यह खेल है, तो बहुत बड़ा खेल है। जब तक यह खेल खत्म होगा, तब तक कोई तीसरा इन दो पाटों के बीच में पिस जाएगा। और, आज तो इस देश में कोई कबीर भी मौजूद नहीं है, जो किसी तीसरे के साबुत न बचने पर थोड़ा रो ले।
धनवान भाइयों में झगड़ा हुआ तो नेता भी उसमें रुचि लेने लगे। नेताओं और सेठों के बीच में गुड़−मक्खी संबंध होता है। दोनों गुड़ और दोनों मक्खी। दोनों एक−दूसरे के आसपास भिनभिनाते हैं। अब, भाइयों में झगड़ा हुआ तो नेता भिनभिनाने का मौका कैसे छोड़ देते? सो, एक नेता ने तो भाइयों को मिल कर रहने का उपदेश भी दे डाला। है न मजे की बात, जिसका धंधा फूट डाल कर चलता है, वह एकता का उपदेश देता है। इस देश में कौन सा ऐसा मुद्दा है जिसका इस्तेमाल नेता फूट डालने के लिए नहीं करते? एक नेता फूट डालने की शुरुआत करता है तो दूसरा मेल कराने के नाम पर फूट को और बढ़ाता है। वैसे नेता की सीख अपने आप में बुरी नहीं है, पर नेता यह सीख खुद क्यों नहीं सीखते? वैसे नेता ने जो सलाह दी, उसका एक कारण यह भी हो सकता है कि नेता अपनी मेहनत बचाना चाहता है। अगर भाई अलग हो गये तो आगे से नेता को दो जगह भिनभिनाना पड़ा करेगा।
तो, दो भाइयों के बीच में झगड़ा बड़े लोगों का था, इसलिए मध्यस्थता करने को एक नेता अपने आप आगे आ गया। बचपन में मैंने एक लोक कथा पढ़ी थी, जिसमें रोटी के बंटवारे को लेकर दो बिल्लियों में झगड़ा हो जाता है। अगर आपको यह लोक कथा याद है, तो फिर यह भी याद होगा कि बिल्लियों के झगड़े में मध्यस्थता करने कौन आया था?
एक दिन भाइयों को यह झगड़ा शांत हो जाएगा, पर खत्म नहीं होगा। भाइयों के चुप हो जाने के बाद दूसरे लोग इसमें रुचि लेंगे। व्यापार विशेषज्ञ इसका व्यापारिक विश्लेषण करेंगे और समाजशास्त्री सामाजिक। बहुत दिन तक चर्चा चलेगी कि भाई−भाई क्यों लड़े? जहां कोई भाई नहीं लड़ेगा, वहां लोग आश्चर्य करेंगे कि ये कैसे भाई हैं जो लड़ते नहीं! पैसे वालों में अब एक नयी कहावत शुरू होने वाली है− ‘भाई वे जो जम कर लड़ें’, एक बात की ओर आपका भी ध्यान गया होगा, गुंडों की जबान में सबसे बड़े गुंडे को भाई बोला जाता है।