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सरिस्का में धारा 144 लगाने की मांग

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अलवर। राजस्थान में अलवर जिले के विश्व प्रसिद्ध सरिस्का बाघ अभयारण्य में मवेशी चराने को लेकर ग्रामीणों और वनकर्मियों के बीच आए दिन होने वाली मारपीट की घटनाओं को रोकने के लिए सरिस्का प्रशासन ने कोर एरिया में धारा 144 मे तहत निषेधाज्ञा लागू करने का आग्रह किया है।

डीएफओ बालाजी करी ने जिला कलेक्टर को पत्र लिखा है कि बाघ परियोजना सरिस्का में पिछले चार सालों में अवैध चराई की रोकथाम की कार्रवाई के दौरान ग्रामीणों उप वन स्टाफ के बीच झगड़े, मारपीट और तोडफ़ोड़ की कई घटनाएं हुई हैं। इन सभी प्रकरणों में मामले पुलिस में भी दर्ज हैं। ऐसे में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए धारा 144 लगाया जाना उचित होगा।

उन्होंने कहा कि अवैध चराई के कारण बाघ बाघिन तनाव में रहते हैं। उन्हें इधर-उधर भागना पड़ता है। ऐसे में उनकी सुरक्षा करना जरूरी है। अभयारण्य में बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश एवं चराई पर प्रतिबंध है लेकिन आस-पास के लोग विस्थापित परिवारों द्वारा जबरन प्रवेश करा कर अवैध चराई की जाती है।

डीएफओ का तर्क है कि बाघ परियोजना रणथम्भौर में वर्षाकाल में अवैध चराई की रोकथाम के लिए धारा 144 लगाई जाती है। इसी तर्ज पर सरिस्का में रोटक्याला, उमरी तिराया से उमरी, सिलिबेरी, भैंसोटा, काबरी जंगल में बाघों की सुरक्षा के लिए अनधिकृत प्रवेश चराई रोकने के लिए इस कोर एरिया में जुलाई से रोक लगाई जानी चाहिए।

बालाजी ने बताया कि हरसाल हम धारा 144 के लिए निवेदन करते हैं, लेकिन जिला प्रशासन उनकी मांग पर कार्यवाही नहीं करता है। उन्होंने कहा कि विस्थापित परिवार चराई के बहाने झोंपड़ी बनाकर रहना शुरू कर देते हैं। फिर न्यूसेंस होता है। इसलिए धारा 144 के लिए लिखा है।

उन्होंने बताया कि रोज हो रहे संघर्ष और मारपीट से फारेस्ट कर्मचारी परेशान हो रहे है। ग्रामीण जबरन पशुओ को सरिस्का में चराने के लिए ले जाते है और वनकर्मियों द्वारा मना करने पर उनके साथ मारपीट कर दी जाती है। उन्होंने कहा कि बरसात के समय मे दूर दूर से 100 से अधिक लोग हजारों मवेशियों को लेकर सरिस्का में आ जाते है और झोपडिय़ा डाल कर बस जाते है।

जिसकी वजह से टाइगर ओर पैंथर डिस्टर्ब होता है और कोर एरिया छोडक़र भागता है। सरिस्का प्रसासन ने डाबली गांव से अवैध रूप से झोपडिय़ा बनाकर बसने वालों को खदेड़ दिया है और उनकी झोपडिय़ा हटा दी है।

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The author Chouhan

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